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Gay Sex with my Straight Friends part 1

मेरा स्ट्रेट फ्रेंड

उन दिनों मैंने नयी नयी जॉब शुरू करी थी और दिल्ली में कुछ ऐसे स्ट्रेट दोस्तों के साथ रहता था जो मुझे बहुत पसंद तो थे मगर जिनके साथ कभी कुछ हुआ नहीं था.

उस ग्रुप में नवीन भी था जो बिहार का रहने वाला एक स्लिम सेक्सी हल्का सांवला लंबा गठीला महा सेक्सी लड़का था और मेरे साथ कॉलेज में पढ़ा करता था. मैंने दो तीन बार उसको अपने अंदाज़ में सिड्यूस करने की नाकाम कोशिश करी थी...मगर उसके दिमाग पर शायद हमेशा से ही लड़कियां सवार रहती थीं इसलिए मेरी बात बिलकुल नहीं बन पायी. फिर इज्ज़त के डर से मैंने उसपे ट्राई मारना बंद कर दिया मगर नवीन की नमकीन खसखसी मस्त जवानी को अपने दिमाग से नहीं निकल पाया था और हमेशा मुठ मारने के टाइम उसकी याद आ जाती थी.

अब तो मेरे साथ उसका एक और दोस्त सौरभ सिन्हा भी हमारे साथ रहने लगा था. मुझे वो भी बहुत पसंद था. था तो वो भी महा सेक्सी...लंबा, स्लिम, सांवला सा...और उसके चेहरे और आँखों में एक मस्त सी इंटेंसिटी थी...एक प्यास थी...जिसके कारण मैं उसके प्रति भी काफी आकर्षित रहता था. उन दोनों बिहारी लड़कों का जादू मेरे ऊपर पूरी तरह से चढ़ा हुआ था. मैं अक्सर बाथरूम में उनकी गन्दी चड्ढी सूंघता था, कभी उनकी पैंट और जींस की ज़िप और पूरी सिलाई पर जीभ फिराता था और फिर मुठ मार कर बाहर आ जाता था. नवीन और सौरभ पूरी तरह मेरे ऊपर हावी थे...और मैं अंदर अंदर उनको पाने की चाहत में हमेशा तिलमिलाया रहता था.

एक बार दारु पीने के बाद मैंने सौरभ की जांघ सहलाते हुए उसका लण्ड थामना चाहा मगर इसके पहले सौरभ कुछ कह पाता हमारे एक और दोस्त शिबली ने देख लिया और बोल पड़ा 'अबे अपना हाथ देख साले कहाँ जा रहा है हाहाहा....साले नशे में तुझे होश भी नहीं है क्या मादरचोद हाहाहा' इससे सबकी एटेंशन मेरी तरफ आ गयी और सभी हँसने लगे...खैर अच्छी बात ये हुयी की सभी ने शराब को दोष दिया...इतने में नवीन बोल दिया 'अबे इस साले की पुरानी आदत है...कॉलेज में भी रात में सोने के टाइम साले का हाथ दो तीन बार मेरे लण्ड तक आने लगा था हाहाहा' फिर सब हँसने लगे और मैं झेंप गया मगर फिर हमारा एक और दोस्त बोला 'अरे भाई थोड़ा होश में रहा कर ना वरना किसी दिन तेरे साथ कोई अप्रिय घटना ना हो जाए हाहाहा' सौरभ जेनराली कुछ रिजर्व्ड रहता था और इस तरह के हंसी मजाक नहीं करता था...उस दिन वो भी बोल दिया 'वैसे भाई सब ठीक ठाक तो है ना...तुझे कोई दूसरी तरह के शौक़ तो नहीं हैं ना हाहाहा' और जब तक बाकी सब हंसना शुरू करते उसके पहले ही सौरभ बोला 'वैसे मुझे कोई दिक्कत नहीं है...हाहाहा...मजबूरी में तो तू भी चलेगा हाहाहा' अब सब हँसने लगे...मैं भी हँसने लगा 'नहीं यार...' मैंने कहा 'ऐसी बात नहीं है यार...तेरे साथ क्या करूँगा हाहाहा' मैं कहकर हंसा तो शिबली बोला 'करने को तो बहुत कुछ है...बस शौक़ की बात है' अब सब हँसने लगे.

उस दिन के बाद से तो मैं थोड़ा ज़्यादा सतर्क रहने लगा और मन ही मन ठान लिया की इस ग्रुप के साथ कुछ ट्राई नहीं करूँगा वरना साला मेरी इज्ज़त की माँ चुद जायेगी.

मगर मैं उन सब के बारे में सोचता हमेशा था. अक्सर कपडे चेंज करने में उनकी जवानी की झलक दिख जाती थी. कभी सुबह सुबह उनके खड़े लण्ड दिख जाते थे...कभी गदराई गांढ़...बस उसके आगे बात नहीं बढ़ती थी. मैं उतने में ही मुठ मारकर तसल्ली कर लेता था. फिर जब नवीन एक बार अपनी गर्ल फ्रेंड को रूम पर लाया और उसके बाद सौरभ ने अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ फोन पर बातें शुरू करीं और शिबली ने अपने लड़कियों के किस्से सुनाये तो मेरा दिल पूरी तरह से टूट गया. नवीन के बड़े भाई भी दिल्ली में ही जॉब करते थे और लक्ष्मी नगर के पास फ़्लैट लेकर अपनी फैमली के साथ रहते थे...मैं बहुत बार नवीन के साथ उनके घर भी गया था. उनके एक साल भर से कम का बेटा था और उनकी नयी नयी शादी हुयी थी.

भईया को देखकर मैं बस ये सोचता था की वो भाभी को चोदते टाइम कैसे मस्त लगते होंगे...और कैसे एक दिन नवीन भी किसी लड़की के साथ घर बसा लेगा और मस्ती से डेली चोदेगा...और मैं एक बार उसका लण्ड पाने के लिए इतना तड़प रहा हूँ.

फिर एक दिन अचानक नवीन के भईया का फोन आया और उन्होंने बताया की वो ऑफिस के काम से एक हफ्ते के लिए बाहर जा रहे हैं इसलिए उसको उनके घर पर रहना होगा क्यूंकि भाभी अकेली रहेंगी...मगर फोन रखते रखते ये भी कहा की भाभी ने अपने भाई को भी बुलाया है...हो सकता है वो आ जाये...और ये भी कहा की अगर वो चाहे तो अपने किसी दोस्त को साथ ले ले ताकि वो वाहन अकेले पड़ा पड़ा बोर ना हो. नवीन अपने बड़े भाई का बहुत लिहाज़ करता था...उसने तुरंत 'जी भैय्या...जी...जी...अच्छा...जी ठीक है भईया...'कहते हुए बातें सुनीं और एंड में 'जी भईया...प्रणाम भईया' कहकर फोन डिस्कनेक्ट कर दिया.

उसके बाद नवीन, सौरभ, शिबली और मेरा प्लान बन गया की हम सब साथ उसके भईया के घर रहेंगे...वैसे भी ग्रेटर नोएडा में जहाँ उसका भईया का घर था वो बड़ा ही सुनसान सा इलाका था...साला वहाँ दोस्तों के साथ बातें करने के अलावा और कुछ था नहीं. भाभी हम सबको पहचानती ही थीं इसलिए उन्हें भी कोई दिक्कत नहीं थी...हम गए तो खूब खाने पीने को मिला और हम लोगों ने गेस्ट रूम पर कब्जा कर लिया क्यूंकि वहाँ बालकनी पर आराम से बातें हो सकती थीं और दसवें फ्लोर से सीन भी मस्त दिखता था...वैसे भी मेरा दिल तो अपने दोस्तों में ज़्यादा लगता था...रात के खाने के बाद हमने छुप कर दारू की बोतल निकल ली और रूम बंद करके अपनी महफ़िल जमा ली...रूम में टीवी भी था इसलिए अंदर की आवाजें बाहर नहीं जा सकती थीं...

मैं अपने दोस्तों की गदराई जवानियाँ देखकर मस्ती ले रहा था...और वेट कर रहा था की कब नवीन वो लोग बाथरूम में जाकर अपने कपडे टांगें और मैं उन्हें सूंघकर मुठ मारूं...नशे में मुझे मुठ मारने में बहुत मज़ा आता है...वो भी जब जवान दोस्तों की चड्ढी हाथ में हो.

खैर नवीन ने जैसे मेरे मन की बात सुन ली क्यूंकि वो बाथरूम जाने के लिए उठा 'मूत के आता हूँ' कहकर वो लड़खड़ाता हुआ चला गया तो मैं बस उसे निहारता रहा...फिर मैंने बड़ी हे प्यास से सौरभ को देखा...उसने कहा 'अबे तू ये घूर घूर के क्या देखता है साले...क़सम से तेरे लक्षण सही नहीं लगते हाहाहा' मैंने कहा 'अबे नशे में हूँ साले जो चाहे बोल ले' 'बहनचोद तू मुझे कभी कभी ना साले होमो लगता है...हाहाहा' उसकी बात से शिबली भी हँसने लगा 'हाहा...हाँ कभी कभी बिलकुल होमो की तरह देखता है साला' जिसपर सौरभ बोला 'हाँ और उस दिन लण्ड पकड़ने की कोशिश भी कर रहा था हाहाहा' कुछ देर वो हंसे दोनों हँसे...फिर उतनी देर में नवीन भी आ गया 'क्या हुआ भोसड़ी वालों क्यूँ हंस रहे हो' उसने पूछा 'कुछ नहीं...जुनेद की ले रहे थे हाहाहा'कहकर दोनों फिर हँसने लगे 'क्या मादरचोदों तुम्हे इसके अलावा कोई नहीं मिला...इसकी लेकर क्या करोगे हाहाहा' उसने भी हँसते हुए कहा तो सौरभ बोला 'हाहाहा जब लेने का मन होता है तो हम नहीं देखते कौन है...बस ले लेते हैं हाहाहा'...मगर मेरी नज़र अब नवीन पर टिकी थी जो केवल बनियान पहने था और जिसकी कमर पर अब बस एक गमछा बंधा था...वैसे में हमेशा उसकी जवानी का एक एक अंग साफ़ दिखता था. मैं हमेशा वैसे में उसकी जांघें, बाजू, छाती वगेरह खूब निहारता था. वो काफी नमकीन था. बस साला मुझसे बहुत दूर था.

पसंद तो मुझे शिबली भी था...उसकी कसमसाती गोरी जवानी में बहुत कसक थी...मैंने अक्सर सुबह उसका लण्ड भी खूब ताड़ा था...उसका साइज़ भी मस्त लगता था...कुछ देर हमने और शराब पी...जब सोने का टाइम आया तो शिबली बोला 'आ जा जुनेद मेरे साथ सो जा...आजा' जिसपे सौरभ बोला क्या बात है यार आज इसको सुला रहे हो 'हाहा...सोते में ये लण्ड थामेगा ना तो मज़ा आएगा हाहाहा' 'अबे हट साले' मुझे मजबूरन कहना पड़ा. वैसे मेरा दिल तो बहुत कर रहा था की मैं शिबली के साथ सो जाऊं...मगर हम अलग अलग ही लेटे और फिर लाईट बंद हो गयीं.

मुझे तो नयी जगह पर नींद नहीं आ रही थी...पता नहीं अंदर से ऐसा क्यूँ लगने लगा था की शायद सौरभ और शिबली अब मेरे साथ सेक्स के लिए इंटेरेस्टेड हैं...मगर हम में से किसी की भी मजाक के अलावा खुलकर कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी...मेरी भी नहीं...हालांकि मैं अब उनकी चाहत की आग में जलने लगा था मगर फिर भी उनसे कुछ कहने की स्थिति में नहीं था.

मैं काफी देर लेटकर सोने की कोशिश करता रहा...मगर साला नींद नहीं आ रही थी.

करवट बदलते बदलते न जाने कितनी देर हो गयी. कभी कभी तो मैं इतना बहक जाता की दिल करता की उनमे से किसी का लण्ड थाम कर चूसने लगुन...फिर मैं अपने आपको रोकता. अक्सर शराब पीने के बाद मेरे सतह वैसा ही होता था. फिर कुछ देर बाद कुछ खट पट हुयी...अँधेरे में मुझे कुछ दिखा नहीं मगर शायद कोई उठा और बाथरूम में चला गया...उसके बाद काफी देर हो गयी...फिर और देर हो गयी...और वो जो भी था वापस नहीं आया....जब बहुत देर हो गयी तो मैं थोड़ा विचलित हुआ...फिर मैंने हल्का सा उचक कर देखा तो पाया की बाथरूम का दरवाज़ा तो खुला था...तब मैं उठा...शिबली हमेशा की तरह अपनी टांगें चौड़ी करके लेता था...मैंने चलते चलते उसके लण्ड के शेप को निहारा और फिर मैंने देखा की नवीन रूम में नहीं था...वो शायद रूम के बाहर चला गया था...मुझे थोड़ी बेचैनी हुयी...और इस बात को सोचकर मज़ा आया की शायद इसी बहाने मुझे अंशे में नवीन के साथ अकेले कुछ पल गुज़ारने को मिल जायेंगे.

मैंने दरवाज़े से बाहर झाँका...और फिर धीरे से खुद ही बाहर चला गया...नवीन कहीं दिखा नहीं...उझे लगा की शायद वो किसी और कमरे में चला गया होगा...फिर अचानक कॉरिडोर के पास वो दिखा...उसकी पीठ मेरी तरफ थी और वो दीवार से टेक लगा कर खड़ा हुआ था...पहले तो मैं समझ नहीं पाया...मैं उसकी तरफ बढ़ने लगा...मैं नंगे पैर था इसलिए उसको आहट नहीं हो रही थी...फिर मैं नवीन के करीब आने लगा...वो अपने बड़े भाई के बेडरूम के दरवाज़े पर खडा था...और फिर मेरी साँसें तेज होने लगीं...नवीन को अभी भी मेरी मौजूदगी का अहसास नहीं था.

मैं जब उसके और करीब पहुंचा तो देखा उसने अपना कंधा पूरा दीवार के सहारे टिकाया हुआ था...और जैसे जैसे मैं उसके करीब गया मैंने देखा की उसके हाथ हिल रहे थे...मेरे दिल की धडकनें थमने लगीं...साँसें बेकाबू होने लगी...क्यूंकि अब साफ़ पता चलने लगा था की वो वाहन दीवार पर टेक लगाये हुए खड़ा खड़ा अपना लण्ड सहला कर शायद आराम से मुठ मार रहा था. अँधेरे में गमछा बांधे हुए उसका जवान जिस्म चमचमा रहा था...वैसे वाहन ज़्यादा अँधेरा नहीं था...जितना था उसमे मुझे नवीन का जिस्म साफ़ दिख रहा था...मैं दबे पाँव उसकी तरफ बढ़ने लगा.

मेरे अंदर उत्तेजना जग गयी थी...दिल धड़कने लगा था...उमंग जागने लगी थी...मैंने कभी नवीन को उस तरह से नहीं देखा था...फिर जब मैं उसके बिलकुल करीब पहुंचा...लगभग उसके पीछे तो मेरे होश उड़ गए और एकदम से कामुकता और उत्तेजना का एक उफान आ गया...मेरे अंदर उमंग जग गयी और अचानक लण्ड ताव में आने लगा और सेक्स की चाहत उमड़ पड़ी.

नवीन अपने भाई के कमरे के दरवाज़े पर खड़ा था...दरवाज़ा खुला था...अंदर एक लाईट जल रही थी...नवीन ने अपने एक हाथ से दरवाज़े के परदे को हल्का सा साइड किया हुआ था...दूसरे से वो अपना लण्ड हिला रहा था और वो अंदर का सीन देख कर मज़ा ले रहा था...अंदर उसकी भाभी बेड पर लेती थीं...उन्होंने एक हलके से कपडे की नाइटी पहनी हुयी थी और दरवाज़े की तरफ करवट ले राखी थी...उनकी जांघें पूरी खुली हुयी थी...और उनकी एक चूची पूरी खुली थी...शायद वो बच्चे को दूध पिलाते पिलाते सो गयी थीं और जल्दी में दरवाज़ा बंद करना भी भूल गयी थीं....किसी भी स्ट्रेट लड़के के लिए वो सीन शायद वैसा ही भयंकर रह होगा जितना उस समय नवीन के को लग रहा था...वो पूरी दुनिया को भुला कर बस अपनी भाभी की जवानी निहारने में लगा था...उसको इस बात का अहसास भी नहीं हुआ की मैं उसके पीछे खड़ा था...वैसे उस समय उसकी भाभी को उस तरह देखकर मैं भी मस्त हो गया था...मगर मुझे असली मस्ती तो इस बात की थी की वाहन नवीन उस तरह खड़ा था.

मैं उचक कर उसके कंधे के ऊपर से अंदर झाँक रहा था...और फिर मैं तभी हल्का सा डिसबैलेंसड हुआ और मैंने उसके कंधे पर हाथ रख दिया...वो एकदम घबरा गया...और जैसे उछल सा गया...उसके हाथ से पर्दा छूट गया...मैंने उसको रंगे हाथों पकड़ लिया था...'क्या कर रहे थे?' मैंने पूछा 'वो...उह उह...कुछ तो नहीं बस पानी पीने आया था' उसने झूठ बोलने की नाकाम कोशिश करी 'बड़े हरामी हो यार...भाई की बीवी पर नज़र डाले हुए हो'....फिर अगले कुछ पल मैंने कुछ कहा नहीं...बस सीधे अपना हाथ आगे उसके गमछे पर फिराया और अपनी हथेली पर उसके लण्ड को फील किया तो लगा की स्वर्ग का मज़ा मिल गया....नवीन कशमकश में था...उस समय उसका सेक्स जगा हुआ था, उसको ये बात सीक्रेट भी रखनी थी और मेरे हाथ से उसको मज़ा मिल रहा था...फिर उसको मुझे पटाना भी था की मैं उसकी हरकत किसी से कहूँ नहीं...मैं उसकी कशमकश का फायदा उठाने लगा...और मैंने गमछे के ऊपर से उसका वो लण्ड जो मैंने सालों चाहा था थाम लिया...नवीन सच में स्ट्रेट मर्द था...उसका लण्ड जैसे साला किसी चीते की तरह उछाल रहा था, लोहे की तरह सख्त था और आग की तरह गर्म...मैं बेकाबू हो गया.

किसी स्ट्रेट लड़के के लिए अपने किसी भी दोस्त के साथ हो रहा उस तरह का गे एनकाउन्टर बड़ा दुविधा वाला होता है...मगर उसको अपनी इज्ज़त का भी ख्याल था...इसलिए उसने मुझे अपना लण्ड सहलाने दिया...मैं लण्ड के साथ उसकी जांघ और उसकी पीठ वैगारह भी सहला रहा था. कुछ देर हम कुछ नहीं बोले....नवीन का लण्ड जो घबराने के कारण हल्का सा मुरझाया था मेरे सहलाने से फिर सामने तन कर खड़ा हो गया...कुछ नहीं तो उसका लौड़ा अच्छा ख़ासा करीब आठ इंच का रहा होगा....मैंने उसको थामने के बहुत सपने देखे थे...बहुत मुठ मारी थी उसको याद करके...मैंने उसके गमछे को नीचे से उठाया और फिर पीछे से नवीन से चिपक कर उसके लण्ड को दबा कर सहलाने लगा...तकरीबन उसकी मुठ ही मारने लगा...और मेरा लण्ड अब नवीन के जिस्म से दब कर चिपकने लगा था....अंदर भाभी अब भी वैसे लेती थी....मैंने कान में फुसफुसा कर नवीन से कहा...देखकर मज़ा ले ले ना यार...रुक क्यूँ गया...

'भाई...यार...वो यार....'उसने कुछ कहना चाहा' देख ले ना यार घबरा मत साले देख ले सीन बढ़िया है देख ले'

'यार प्लीज़...यार...'वो शायद कहना चाह रहा था की मैं किसी से कहूँ नहीं…मगर तब तक मैं अपने काबू में नहीं था...एक तो नवीन की सालों पुरानी जवानी की कसमसाहट और उसपर से शराब के नशे के साथ वो दिलचस्प सिचुयेशन...सब मिलकर कामुकता का एक ज्वालामुखी बन गए थे. नवीन का लण्ड मेरे हाथ में तड़प रहा था...उसकी मर्दानगी मुझ पर अपना जादू चला रही थी...दूसरे हताह से मैं नवीन का पूरा जिस्म दबा दबा कर सहला रहा था....उसका लण्ड मेरे हाथ में उछल रहा था...उसकी और मेरी दोनों की ही साँसें तेज़ी से चल रही थीं और मन में हज़ारों सवाल थे...उसके मन में दुविधा थी...मेरे मन में चाहत थी...वो मुझे पाना नहीं चाहता था...मैं उसको खोना नहीं चाहता था...मगर अब हालात ऐसे थे की उसका कुछ ना कुछ तो होना ही था.

अंदर उसकी भाभी ने जब हलकी सी करवट ली तो उनकी टांगें और फैल गयीं...अब उनकी गदराई जाँघों के बीच उनकी काली पैंटी दिखने लगी...उस सीन का असर मुझे नवीन के लण्ड पर दिखा....उसने हलकी सी एक सिसकारी भरी और फिर से अपने लण्ड को पकड़ने की कोशिश करी...मगर उसका लण्ड तो एमरी गिरफ्त में था...उसने मेरे हाथ के साथ ही अपने लण्ड को फिर थाम लिया...उसके हाथ की गर्मी मेरे हाथ में आई...मैंने उसका लण्ड हलके हलके दबाते हुए हिलाया...दूसरे हताह से मैंने इस बार उसके तत्ते सहलाना और पकड़ कर दबाना शुरू कर दिए...अब नवीन भी कुछ कुछ कामुक होकर बेकाबू होने लगा...शायद वो अपनी दुविधा भूलने लगा...मेरा लण्ड भी बड़े मजे से उसके जिस्म से चिपक रहा था और जब मैं हल्का सा धक्का देता तो वो एक बार उछल कर हुल्लाढ़ भरता और मेरी भी एक दबी दबी सी सिसकी निकल जाती. माहौल बहुत गर्म था...भीना भीना मज़ा आ रहा था...थोड़ा दुविधा थी...पता नहीं था की बात कहाँ तक जायेगी...अब मेरे ऊपर था की मैं उस एडवांटेज को कितना भुना पाता.

अब तो रह रहकर मेरी नज़र भी भाभी पर पड़ रही थी और वो मुझे बस इसलिए अच्छी लग रही थी क्यूंकि नवीन को अच्छी लग रही थी!

नवीन का लण्ड अब पूरे जोश में था...दुविधा के बावजूद उसकी जवानी अब रंग में थी...मैंने उसकी एक बाजू को अपने होठों से सहलाया...मुझे उसके सूखे पसीने का नमकीन स्वाद होठों पर महसूस हुआ और उसके साथ नवीन के जिस्म की अपनी एक मर्दानगी की तीखी खुशबू जो मुझे जमकर मदहोश कर रही थी...मैं अपने कांपते हाथों से उसके लण्ड के पूरे तने को अपनी हथेली से सहलाकर हलके हलके दबाते हुए हिला रहा था और अपने अंगूठे से उसके सुपाड़े को दबा रहा था और उसके परिकम को उसपर मसल रहा था...मैं अब अपने आप पर काबू नहीं रख पा रहा था...मैंने उसका लण्ड सहलाते हुए उसकी कमर पर हाथ फेरा और फिर उसकी गांड की दोनों फांकों को प्यार से अपने हाथों से नापा...फिर नहीं रहा गया तो मैंने पीछे से उसकी दोनों जाँघों को बारी बारी सहलाया...पहले कुछ नीचे और फिर और ऊपर तक...फिर मैंने पीछे से उसके गमछे में हाथ घुसा दिया और उसकी गांढ़ के रेशमी बालों को अपनी उँगलियों से सहलाते हुए उसके टाईट कसे हुए मस्त छेद पर ऊँगली फेरते हुए दबाई...इस परवो हल्का सा चिहुका और उसने अपने एक हाथ को पीछे करते हुए मेरे हाथ को पकड़ लिया...मगर मैं रुका नहीं...मैं उसके कान तक गया...और फुसफुसा कर बोला 'प्रोमिस यार किसी से कुछ नहीं कहूँगा'

'मत कहना भाई' जब उसने अँधेरे में अपने चेहरे को मेरे चेहरे की तरफ घुमाकर कामुकता और घबराहट वाली टोन में मुझसे कहा तो मुझे उस समय अपने चेहरे पर उसकी सांस की गर्मी जादुई लगी...मुझसे ना रहा गया और मैंने उसकी गर्दन के बगल में उसकी गर्दन और कंधे के बीच के मस्क्युलर पोर्शन पर अपने होंठ रखकर उनको वहाँ दबा दिया और उसको चूमने लगा तो इस बार नवीन ने भी अपना एक हाथ मेरी पीठ पर फिराना शुरू कर दिया. अब तो मेरी मस्ती बहुत बढ़ गयी...उसका गर्म गदराया हाथ बहुत मरदाना था और उसके सहलाने के अंदाज़ में बहुत प्यास थी.

मैंने उसकी उत्तेजना और बढ़ाने के लिए उसके कान के पास फिर गया और उसका लण्ड सहलाते हुए बोला 'भाभी पर दिल आ गया क्या भाई?' तो उसने पहले बस एक लंबी सांस लेटे हुए सिसकी भरी 'सिउउउह्ह्ह....' 'बोल न यार' मैंने उसको फिर उकसाया...लड़का नशे में था और जवान था वो मुझसे बोला 'उह्हह हाँ यार....' तो मैंने उससे कहा 'भाई आइटम तो मस्त है तेरा भाई मस्त हो जाता होगा' 'उह्हह हाँ यार...' 'चल देख ले जी भर के देख ले ना' मैंने उससे कहा और उसके लण्ड को अपनी पूरी गिरफ्त में लेकर दबाया तो उसने फिर सिसकारी भरी. 'साले पहले भी देखता था क्या?' मैंने उससे पूछा...वो भी नशे में था बोला 'हाँ एक दो बार' 'कभी चूत देखि?' 'हाँ एक बार पूरी खुली हुयी बुर देखी यार' 'साले पेला नहीं?' नहीं यार...भाई गांढ़ मार देगा' 'तो क्या हुआ चूत के बदले भाई से गांढ़ मरवा लेना ना...फायदे में रहेगा' 'नहीं यार...पौसिबिल नहीं है यार...आह्ह उह्हह यार...भाभी मुझे बहुत पसंद है यार' 'हाँ माल तो अच्छा है' मैंने कहा 'पेलने का बहुत दिल करता है मेरा' 'तो वो जो लड़की तूने फन्सयाई है उसको नहीं पेला/' 'नहीं यार बस चूची चुसाती है यार वो पेलवाती नहीं है' उसने तड़प कर कहा 'तो मेरे पास आ जाता ना यार' मैंने उसके कान को अपनी जीभ से सहलाते हुए उसको गीला करते हुए कहा 'ये शौक़ नहीं है' 'अबे हट भाभीचोद साले...इसमें क्या है...मज़ा ही आएगा तुझे' 'अबे कभी इस बारे में सोचा नहीं था' 'अब देखा ना मज़ा आ रहा है ना?' मैंने उसका लण्ड सहलाते हुए कहा 'हाँ यार...मज़ा तो साला बहुत आ रहा है' 'तो ऐसे ही मजे ले लेटा ना' 'हाँ यार आह...वैसे तुझपे शुरू से शक था मुझे यार' उसने फुसफुसाते हुए कहा.

'किस बात का शक यार?' मैंने पूछा मगर उसने कुछ जवाब नहीं दिया 'बोल ना' मैंने फिर पूछा तो जवाब में उसने बस सिसकारी भरी 'बता ना साले' मैंने उसके लण्ड को दबाते हुए पूछा तो उसने हिचकिचाते हुए कहा 'वो याद है हॉस्टल में...ब्लू फिल्म देखने के बाद जब तू मेरे रूम में सोया था...' 'तो क्या हुआ कहाँ कुछ हुआ था' तुने कोशिश करी थी ना साले इसी सब की/' उसने पूछा 'हाँ' 'तू क्या हमेशा से ही गे है?' 'यार बस थोड़ा मज़ा ले लेता हूँ' 'सौरभ तो साला श्योर है की तू गे है...तुने उसके साथ भी ट्राई मारा था ना?' 'हाँ यार' उसका लण्ड अब घोडे की तरह कूद रहा था अंदर भाभी अपने सपने में खोयी थी...अब मुझसे नहीं रहा जा रहा था...मैंने भी सोचा अब दोस्त फँस ही गया है...उसको असलियत पता ही चल गयी है…मैं अब उसके साथ बहुत खुला खुला फील कर रहा था. 'सौरभ क्या कह रहा था?' मैंने पूछा 'अबे यही तो तू है...बता रहा था तुने उसका लौड़ा थामने की कोशिश करी थी' उसने सिसकारी भरते हुए कहा 'भाई ये सब कहना मत किसी से' उसने फिर कहा 'तू मत कहना तो मैं भी नहीं कहूँगा' 'ठीक यार...वरना अगर बात बड़े भाई तक पहुंची तो सोच ले यार क्या हालत होगी...मुह दिखाने लायक नहीं रहूँगा' 'तब साले भाभी को देख क्यूँ रहा था?' 'अबे पानी पीने उठा था यार...दरवाज़ा खुला देखा तो झाँक लिया' मैं अब उसकी बातें नहीं सुन रहा था...मैं अब उसके लण्ड पर झुकने लगा...और झुकते झुकते उसके जिस्म को सहलाने लगा....

वो भी शातिर था...तुरंत मेरे झुकने का मकसद समझ गया 'अबे अबे अबे...उह अबे क्या कर रहा है साले' उसने मेरा सर पकड़ कर मुझे रोकते हुए कहा मगर मुझे रोक नहीं पाया...मैंने तुरंत उसके लण्ड को अपने होठों से सहलाया तो मुझे रोकते रोकते वो सिसकारी भरने लगा. मुझे भी लगा की इसके पहले साला बिदक जाए या अपना मन बदल ले मैंने घप से मुह खोला और उसके लण्ड को झुके झुके ही अपने मुंह में भर लिया...जैसे ही मैंने उसका लण्ड मुंह में लिया नवीन की जैसे साँसें थम गयी...कुछ देर उसने कुछ नहीं किया...बस मेरे सर को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और पत्थर की मूरत की तरह वाहन जमा हुआ खड़ा रह गया. उसने कभी सपने भी नहीं सोचा था की किसी लड़के को एक दूसरे लड़के के साथ इतना मज़ा मिल सकता था...वो शुरू से ही स्ट्रेट था और इस और लड़कियों के ही सपने देखता था...उसने तो कभी ये भी नहीं सोचा था की एक लड़का दूसरे के साथ वो सब कर सकता था जो उस समय मैं उसके साथ कर रहा था...उसके लिए ये सब नया था...मगर अब उसको उस सब में भरपूर मज़ा मिल रहा था...शुरू की कशमकश के बाद वो रिलैक्स होने लगा और हलके हलके हरकत में आने लगा...मैं अब उसके सामने अपने घुटनों के बल उचक कर बैठ गया और मस्ती से उसका गमछा उठा कर उसके लण्ड को सपर सपर चूसने लगा तो वो भी अब मेरे मुह में अपने लण्ड से धक्के देने लगा...मगर अभी वो बस हलके हलके धक्के ही दे रहा था. उसका लण्ड मेरे मुह में जाकर मचल रहा था और जब मैं उसपर अपनी ज़बान फिरा कर होठों से दबा रहा था तो वो वैसे उछल रहा था जैसे शायद नवीन ने सोचा होगा की उसका लण्ड बस किसी लड़की की चूत में घुसकर उछलेगा.

अब उसने सहारे के लिए अपना पूरा वज़न दीवार परदे रखा था...और पर्दे से अंदर झांकते हुए मेरा सर पकड़ कर मुझे लण्ड चुसवा रहा था...उसके लण्ड में अब पूरी जान थी...वो अपने पूरे मर्दाने जोश और जवानी के खुमार में था...मैंने भी अपने दोनों हाथों से उसकी जांघें, पेट और कमर सहलाना शुरू कर दिया था...और मुझे सबसे ज्यादा उसकी भरी भरी मर्दानी गांड की मस्त फांकें दबाने और सहलाने में आ रहा था...अब तो मैं उसकी दरार में भी उंगलियां फिरा रहा था और जब उसके छेद पर ऊँगली दबाता तो वो जोर से मुंह में लण्ड का धक्का देता जिससे उसका सुपाडा मेरी हलक तक फँस जाता था...उसका लण्ड अब पूरा भीगा था...वो पूरे मजे में था...उसका लण्ड जोश में था...उसको पहली बार किसी दूसरे लड़के के मुंह की गर्मी का मज़ा मिल रहा था....सामने उसको भाभी की जांघें दिख रही थीं...मतलब डबल मज़ा.

उसके लण्ड से तीखी सी मर्दों वाली खुशबू आ रही थी और मेरी उंगलियां पीछे उसके छेद के आसपास के रेशमी बालों में उलझ रहीं थीं...वो गांड भींच कर मुझे लण्ड चुसवा रहा था....कभी एक हाथ दीवार पर रख लेता...कभी उससे पर्दा और ज्यादा साइड करता और कभी अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकड़ लेटा था. वो पूरी तरह कामुकता से बौखलाया हुआ था...और मैं तो आँखें बंद करके उसके सामने बैठकर उसके लण्ड का पूरा आनंद ले रहा था....कभी उसकी गांड सहलाता...कभी उसके टट्टे दबाने लगता...कभी उसकी जांघ सहलाता...ये वासना का वो पड़ाव था जहां गे और स्ट्रेट के बीच की बाउंड्री खत्म हो गयी थी और अब बस दोनों भरपूर मज़ा ले रहे थे....वैसे उसके दिमाग में क्या चल रहा था मुझे पता नहीं मगर उसका जिस्म अब पूरे मज़े ले रहा था.

अंदर भाभी ने एक बार फिर करवट ली...और नींद में उनका एक हाथ अपनी चूत के पास आया....इधर नवीन ने एक कामुकता भरी प्यासी सी सिसकी भरी 'सीईऊऊह....यार....आह' कहते हुए उसने मेरे मुह में लण्ड का एक तगड़ा धक्का दिया और उसका सुपाड़ा मेरी हलक में फंसा...मैंने उसकी गांढ़ को दबोच कर पकड़ लिया...अब बात आगे बढ़ने लगी थी...नवीन अब हल्का सा मुड़ा...अब उसने मुझे दीवार से टिका कर बिठा दिया और अपने दोनों हाथ सामने दीवार पर रख लिए...अब वो रूम के अंदर देख पा रहा था मगर मैं नहीं...अब शायद वो ख्यालों में भाभी की चूत चोद रहा था क्यूंकि उसके धक्के भी वैसे ही रेगुलर हो गए थे...ज़्यादातर हलके मगर बीच बीच में तेज...रूम से आती रौशनी में उसका जिस्म चमक रहा था...कभी कभी जब उसका लण्ड मुंह से निकलता तो मुझे वाहन उसके थोड़ा नीचे एंगल से उसका बहुत ज़बरदस्त नज़ारा देखने को मिलता. उसका सांवला मोटा लण्ड मेरे थूक से भीगा हुआ बड़ी सुंदरता से हवा में लहराता...मैं प्यार से उसके टट्टों को अपनी हथेली से सहलाता. कभी वो अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को सहलाता और अंगूठों से मेरे होठों को जिनके बीच उसका मरदाना लण्ड था. उसके अंदर शायद कंफ्यूज़न था की वो उस सब का मज़ा ले या नहीं ले.

मैं उसकी कमर जोर से पकडे हुए था और उसके मूवमेंट्स का मज़ा ले रहा था. वैसे हम जहाँ थे वहाँ रहना काफी रिस्की था...मगर फिर भी रुकने का मन नहीं था क्यूंकि हो सकता था रुकने के बाद नवीन फिर से कंटिन्यू करे की ना करे...इस लिए मैं रिस्क लेकर उसका लौड़ा चुसे जा रहा था और वो भी अंदर अपनी भाभी की जवानी देखकर मन ही मन उनके सपने देखते हुए मुझे अपना लण्ड चुसवा रहा था. मैं जब अपने होठों को उसके लण्ड पर दबा कर उनको उसके लण्ड के तने पर भीगा कर रगड़ता तो नवीन मस्ती से भरकर मेरे सर को पकड़ लेता था और उसके लण्ड में अचानक और ज़्यादा उछाल आ जाता था और वो मेरे मुंह में अंदर लोहे की तरह टकराता था.

मैं अब आराम से नवीन की कमर से होते हुए उसकी मज़बूत मर्दानी गांढ़ भी सहला रहा था...उसके छेद के पास के रेशमी बाल मस्त थे उनके बीच अपनी ऊँगली फंसा कर उनसे खेलने में बहुत मज़ा आ रहा था...फिर मैं कभी कभी ऊँगली से नवीन की गांढ़ का टाईट मरदाना छेद सहला देता तो वो गांढ़ को जोर से भींच लेता था...उसके अंदर बहुत मर्दानगी थी.

मेरी तो मानो मन मांगी मुराद पूरी हो रही थी.

देखते देखते नवीन का जोश और ज्यादा भड़कने लगा और उसके लण्ड के प्रहार और ज़्यादा जानदार और तेज होने लगे...एक दो बार तो उसका सुपाड़ा मेरी हलक के अंदर भी घुसा गया जिसकी वजह से मेरे हलक का छेद दुखने लगा...उसने मुझे जोर से पकड़ लिया...जो भी था, मतलब नवीन था तो जवान और लड़कियों का रसिया मगर चुसवाने के अंदाज़ से साफ़ लग रहा था की उसको सेक्स का ज़्यादा एक्सपीरियंस नहीं था...वो मुंह चोदने में लण्ड साध नहीं रहा था, बस जहाँ हो रहा था गांढ़ भींचकर तेज तेज धक्के दे रहा था. जो एक तरह से मेरे मुंह को दुख रहे थे. मगर मैं उस सब चीज़ का पूरा मज़ा लेना चाहता था. वहाँ उस रात उसकी भाभी के दरवाजे पर बैठकर जब मैंने उसका लण्ड चूसा था वो ऐसा सीन था की मुझे आज भी अक्सर याद आ जाता है. जैसे जैसे नवीन की स्पीड बड़ी मैंने उसकी गांड दबोचना शुरू कर दी...मैं जितना उसकी गांढ़ सहलाता और दबोचता वो उतना ज़्यादा उत्तेजित होकर उतना ज़्यादा तेज़ी से मेरा मुंह चोदने लगता और फिर अचानक उसने लण्ड मुंह से निकल लिया मगर फिर भी चेहरे के करीब रखा तो उसका लण्ड हिचकोले खा खाकर मेरे मुंह पर थप्पड़ मारने लगा...मेरा अपना ही थूक उसके लण्ड से मेरे चेहरे पर लगने लगा और फिर इसके पहले की मैं कुछ समझ पाता नवीन कहराया 'उह्ह्ह्ह्ह्ह आह' और मैं उसको रोक पाता या कुछ कह पाता उसके पहले ही उसने एकदम से अपना लण्ड थामने की कोशिश करी मगर तब तक मुझे अपने चेहरे पर उसके लण्ड से निकली गर्म गाड़े वीर्य की बौछार महसूस हुयी तो मेरी सांस रुक गयी...उसके वीर्य की पहली धार सीधा मेरे चेहरे पर टकराई...फिर उसने जब लण्ड थामने की कोशिश करी तो उसी बीच उसका लण्ड फिर उछला और इस बार पहले वो मेरी गर्दन से टकराया और फिर मेरे माथे के पास आया और गर्दन से लेकर माथे तक उसके वीर्य ने मेरा चेहरा भीगा दिया...उसी अफरा तफरी में उसका हाथ मेरे चेहरे पर आ गया...लण्ड पकड़ते पकड़ते उसने उसी से अपना वीर्य पूरा मेरे चेहरे पर मसल दिया.

मेरा चेहरा उसके गर्म गर्म वीर्य से पूरा लिसलिसा कर भीग गया था...और मैं अपनी ज़बान से होठों के आसपास उसको चाट रहा था. नवीन ने जल्दी से अपने गमछे से मेरा मुंह पोछने की कोशिश करी...मैंने कुछ तो अपनी उँगलियों से ही उसको अपने चेहरे से लेकर चाट लिया...'अबे एकदम से झड़ गया यार' उसने कहा 'कोई बात नहीं' 'मुंह धो लेना' उसने कहा 'हाँ धो लूँगा' कहकर मैं उठा और फिर फिर हम दोनों कमरे में वापस जाकर अपनी अपनी जगह पर लेट गए...उस दिन मुझे उस आनंद के कारण बहुत देर तक नींद नहीं आई...फिर मैंने कुछ देर अपना लण्ड बिस्तर पर रगड़ रगड़ कर झाड़ दिया और तब जाकर मुझे नींद आई.

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