मैं आराधना, आज आपसे एक ऐसे सपने के बारे में बात करने जा रही हूं, जो मामूली नहीं था। यह कोई साधारण सपना नहीं था, बल्कि ऐसा लगता था जैसे मैं उस सपने के अंदर ही थी। जो कुछ भी हो रहा था, वह सब इतना वास्तविक लग रहा था कि मैं आज तक यह सोचने को मजबूर हूं कि वह सपना था या हकीकत।
रविवार का दिन...
आज छुट्टी का दिन था, और हम सबने कहीं घूमने का प्लान बनाया। हम दिल्ली में किसी ऐसी जगह की तलाश में थे, जहां कुछ अलग महसूस हो, कुछ रोमांच हो, लेकिन कोई खास जगह नजर नहीं आ रही थी। हमें एक रोमांचक यात्रा पर जाना था।
इस यात्रा में मैं, मेरी मम्मी, मेरा भाई सोनू, मेरी बहन गौरी, और हमारे चचेरे भाई-बहन सुमित और आरती शामिल थे।
हम सभी उलझन में थे कि क्या करें। तभी हमारे घर के गेट पर एक अनजान शख्स आता है और दरवाजे को खटखटाता है। मैं देखने के लिए दरवाजा खोलती हूं, लेकिन जैसे ही मैं दरवाजा खोलती हूं, वह शख्स एक कागज फेंक कर जल्दी से चला जाता है। मैं उसका चेहरा ठीक से नहीं देख पाई। मेरी नजर उस कागज पर पड़ी, और मैंने उसे उठाकर देखा।
मम्मी ने पूछा, "कौन था दरवाजे पर?"
मैंने जवाब दिया, "पता नहीं मम्मी, मैं देख नहीं पाई। जाते-जाते वह यह कागज फेंक कर चला गया।"
मम्मी ने पूछा, "कौन सा कागज है? इसमें क्या लिखा है?"
मैंने कागज को देखा और पढ़ने लगी। उसमें लिखा था कि आपके नजदीक शालीमार गांव में एक नई जगह खुली है, जिसका नाम "वालियार साम्राज्य" है। यह जगह पुरानी इमारत से बनाई गई है और हॉरर फील देती है। अगर आपको हॉरर जैसी चीजों में रुचि है, तो यह जगह आपके लिए है। साथ ही, उस कागज में कुछ तस्वीरें भी थीं, जो देखने में बेहद आकर्षक लग रही थीं।
मैंने कागज को पढ़ा और तस्वीरें देखी। मुझे वह जगह बहुत ही दिलचस्प लगी, और मैंने मम्मी से कहा, "हमें यहां जाना चाहिए, मम्मी!"
मम्मी ने थोड़ा असमंजस में कहा, "पता नहीं, यह जगह कैसी होगी। मैंने कभी नहीं सुना कि यहां कोई काम चल रहा था, और यह इतनी जल्दी तैयार भी हो गया। मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है।"
मैंने मम्मी की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। मुझे तो बस एक बार वहां जाना था, क्योंकि वह जगह हमारे घर के पास थी और कम पैसों में घूमने का मौका मिल रहा था। मेरी जिद के आगे मम्मी मान गईं, और मेरे भाई-बहन भी साथ देने के लिए तैयार हो गए।
गौरी ने मम्मी से पूछा, "मम्मी, क्या हम आरती और सुमित को भी बुला लें? वो भी हमारे साथ घूमने चलेंगे।"
मम्मी ने कहा, "ठीक है, उन्हें फोन करके बुला लो। वे तैयार होकर वहीं इंतजार कर लें, उनका घर तो शालीमार गांव में ही है। उन्हें यहां आने की जरूरत नहीं है।"
गौरी ने आरती को कॉल किया।
आरती ने फोन उठाते ही कहा, "हेलो, गौरी! आज कैसे फोन किया?"
गौरी ने कहा, "हमारे साथ 'वालियार साम्राज्य' घूमने चलोगी?"
आरती ने अचंभित होकर पूछा, "ये कौन सी जगह है?"
गौरी ने बताया, "तुम्हारे घर के पास ही है, शालीमार गांव के आगे, हैदरपुर के रास्ते में।"
आरती ने उत्साहित होकर कहा, "अच्छा, मुझे तो पता ही नहीं था कि हमारे घर के पास इतनी बड़ी जगह खुली है। अगर ये अच्छी जगह है, तो मैं जरूर चलूंगी।"
गौरी ने कहा, "बस, हम अभी तैयार होकर वहीं आ रहे हैं। तुम और सुमित भी तैयार रहना, हम तुम दोनों को वहीं से पिक कर लेंगे।"
आरती ने कहा, "ठीक है, लेकिन सुमित शायद घर पर नहीं है और वह शायद ना जाए।"
गौरी ने पूछा, "क्यों?"
आरती ने कहा, "उसका कुछ पता नहीं चलता। वह हमेशा अपने दोस्तों के साथ बाहर रहता है। लेकिन मैं तो जरूर जाऊंगी। मैं अभी तैयार होने जा रही हूं।"
गौरी ने कहा, "ठीक है, हम भी तैयार हो रहे हैं।" फिर फोन कट गया।
कुछ देर बाद, हम सब तैयार हो गए और सोनू ने कहा, "चलो, अब निकलें। तुम सब तैयार होने में कितना वक्त लगा देते हो।"
हम जाने लगे, तभी हमारे गली के कुत्ते अचानक हम पर भौंकने लगे। यह पहली बार था कि वे इस तरह से भौंक रहे थे।
मम्मी ने कहा, "इन दोनों को क्या हो गया है? ये हमारे ऊपर इस तरह क्यों भौंक रहे हैं? ये तो कभी ऐसे नहीं करते थे।"
सोनू ने कहा, "मम्मी, आप तो जानती हैं ना, ये पब्ज़ी और गुजी (कुत्तों के नाम) हमेशा ऐसी फालतू हरकतें करते हैं। इन्हें लग रहा होगा कि हम इन्हें छोड़ कर कहीं जा रहे हैं, इसलिए ऐसा कर रहे हैं।"
सोनू ने उन दोनों को वहां से भगा दिया, लेकिन पब्ज़ी नाम का कुत्ता अचानक रोने लगा, जैसे वह हमें कुछ बताने की कोशिश कर रहा हो। लेकिन हमने उसकी परवाह नहीं की और वहां से चल पड़े।
(हम वहां जा तो रहे थे, लेकिन क्या वहां जाना हमारे लिए सही था? कुछ ऐसा था जो हमें वहां जाने से रोक रहा था। हर छोटी-बड़ी चीज हमें वहां जाने से मना कर रही थी, लेकिन हमने सब कुछ नजरअंदाज कर दिया। क्या सच में जो हमारे साथ हो रहा था, वह इसलिए था कि हम उस जगह पर ना जाएं? उस जगह पर ऐसा क्या था, जो हमें बार-बार चेतावनी दे रहा था?)
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