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Gay Sex story with my Straight Friends part 4

उस दिन नींद तो बहुत गहरी आई मगर सुबह के लगभग पांच बजे के करीब पिशाब लगने के कारण मेरी नींद टूटी. मगर उसके बाद तुरंत उस मस्त अहसास के कारण मैं लेटा रहा. पिछली रात का हर सीन मेरी नज़रों के सामने दौड़ गया और उसके साथ छत पर हुआ उमंग के साथ वाला सीन भी याद आ गया. मेरे अंदर तुरंत एक बिजली सी दौड़ गयी...जब ध्यान थोड़ा सा बंटा तो समझ में आया कि मेरी नींद कैसे टूटी थी. रात में कई बार करवट बदली होगी.

जब मैं सोया था तो नवीन सीधा था और मैंने उसकी जांघ पर जांघ चड़ा दी थी. मगर अब ध्यान आया की मैं नवीन की तरफ पीठ करके करवट लेकर सोया हुआ था. नवीन पीछे से मुझसे पूरा चिपका हुआ था. उसके बाज़ू मेरी बाज़ू पर थे. एक हाथ मेरी कमर पर था. मैंने गांढ़ मोड़कर पीछे कर रखी थी और उसपर नवीन का लण्ड खड़ा होकर टनाटन रगड़ रहा था. बस फिर क्या था. मुझे तुरंत कामुकता ने घेर लिया. मैं हलके हलके अपनी गांढ़ मटका कर उसपर नवीन के हथोड़े का मज़ा लेने लगा. रात के नशे में उसका लण्ड अलग था मगर अब सुबह के खुमार में जवानी के पूरे जोश में उसका लण्ड फिर वैसे ही मज़बूत हो गया था जैसे दो बार चूसने के टाइम मिला था. साले के अंदर एक प्रचंड भूचाल मचा हुआ था और वो रह रह जब सही से दरार पर दबता तो कई बार जोश में उछल जा रहा था. मैं पिशाब लगने के बावाजूद चुपचाप लेटकर मज़ा लेता रहा. नवीन शायद नींद में था वो रह रह कर लण्ड को जोर से मेरी गांढ़ पर दबा रहा था. कुछ देर में ही मेरी गांढ़ चुदने के लिए उतावली होने लगी और मेरा लण्ड भी खड़ा हो गया.

अभी वो सिचुयेशन थी कि मुझे पता नहीं था कि आगे क्या होगा. इसलिए मैं बस जो हो रहा था उसका मज़ा ले रहा था.

नवीन की तेज चलती साँसे मेरी गर्दन के पिछले हिस्से से टकरा रही थीं. फिर जब थोड़ी नींद और टूटी तो मैंने ध्यान दिया कि मेरी चड्ढी तो उतरी हुयी थी. मुझे ध्यान आया कि रात में सोने के टाइम मैंने चड्ढी पहन ली थी. तब मुझे समझ में आया कि नवीन सोया नहीं था और शायद काफी देर से वो ऊपरी मज़ा ले रहा था. उसने अपनी चड्ढी भी उतार रखी थी जिसकी वजह से उसका लण्ड मेरी दरार में दबकर फिसल रहा था. मैंने अपनी गांढ़ फिर थोड़ा पीछे करी और दरार में नवीन के सुपाड़े को महसूस किया...रगड़ खता हुआ उसका सुपाड़ा ऊपर से होता हुआ जब मेरे छेद पर पहुंचा तो मैंने गांढ़ भींच ली और उसके लण्ड को वहीँ क़ैद में ले लिया. इस बार उसके लण्ड ने ज़बरदस्त कूद मारी तो मेरे अंदर जैसे आग भड़क गयी. मैंने अपना एक हाथ पीछे किया और उसका लण्ड थाम लिया ताकि उसका सुपाडा मेरे छेद से हट न पाए. मेरे ऐसा करते ही नवीन ने मुझे भी सही से पकड़ लिया. पहले वो कभी मेरी गांढ़ मारने को तैयार नहीं होता था...मगर उस समय उसका अलग मूड था. मैंने अपने ही हाथ से अपने छेद पर उसका लिसलिसाता सुपाडा रखकर अपनी गांढ़ पीछे करी तो उसका सुपाड़ा मेरे छेद पर दबा. मुझे तो बहुत मज़ा आया. नवीन ने अपनी बाज़ू से मेरी बाज़ू दबा ली.

अब तो मस्ती दिमाग पर चढ़ गयी. मैंने खुद ही अपने छेद की सिलवटों को कुछ ढीला किया. वैसे भी वो लण्ड की रगड़ से कुलबुला रही थीं...तुरंत मस्त ढीली हो गयीं. मैंने अपने छेद को उसपर और दबाया तो मेरी सिलवटें अपने आप फैलने लगीं. मैं नवीन से चुदने को बहुत सालों से परेशान था...मेरे तो मन की तमन्ना हलके हलके पूरी होने की तरफ थी. मैंने गांढ़ और ढीली छोड़ी और नवीन ने ताव खाए लण्ड को थामे रखा. उसका लण्ड अब बिलकुल लोहे की तरह सख्त हो गया था. मैंने इस बार कसमसाकर अपना छेद उसके लण्ड पर दबाया तो उसका सुपाडा मेरी गांढ़ में घुसा 'उह्ह्ह्हाह्ह्ह्ह्ह' जैसे ही लण्ड अंदर घुसा नवीन ने मुझे जकड़ कर एक सिस्कर्री भरी और मेरी गर्दन के पीछे एक तेज गहरी सांस छोड़ी तो मैं आनंद से विभोर हो गया और मेरी अगंढ़ जैसे ऑटोमैटिकली खुलने लगी...अब आगर मैं चाहता भी तो नवीन के लण्ड को अपने अंदर घुसने से नहीं रोक पाता...वैसे भी नवीन काफी देर से लण्ड को गांढ़ पर रगड़ रहा था जिसकी वजह से उसने मेरे छेद के आसपास काफी प्रीकम भर दिया था. मेरी गांढ़ तो तब तक दहकने लगी थी. मैंने एक बार फिर गांढ़ पीछे करके नवीन के लण्ड को थोड़ा और अंदर घुसवाया. फिर जब नवीन लगभग एक तिहाई लण्ड देने के बाद रुक गया तो मैंने अपना छेद उसके लण्ड के तने पर कस किया....पहले हलके से कसा फिर जोर किचकिचाकर भींच लिया 'आह' ऐसा करते ही नवीन की सिसकारी निकल गयी. मैंने फिर छेद ढीला किया और पहले गांढ़ कुछ आगे करी...आगे करने से लण्ड कुछ गांढ़ से बाहर सरका...और फिर मैंने छेद ढीला करते हुए गांढ़ पीछे करी तो लण्ड और अंदर घुसा...मैंने फिर गांढ़ कस ली, फिर ढीली करी, फिर कस ली, फिर ढीली कर ली...अब नवीन ने मुझे जोर से पकड़ लिया और सिस्कारियां भरने लगा. गांढ़ से लण्ड की मालिश करने पर नवीन के अंदर एक सनसनी दौड़ गयी और तब पहली बार उसने खुद से ही मेरी गांढ़ के अंदर लण्ड का धक्का दिया तो मैंने भी गांढ़ खोल कर उसको पीछे किया...इस बार उसका लण्ड मेरा छेद चौड़ा करते हुए अंदर घुसा और फिर नवीन मुझे पूरा चिपक गया. अब उसका लण्ड आधे से भी ज़्यादा मेरी गांढ़ के अंदर था. अब नवीन ने कुछ हलके हलके धक्के दिए तो लण्ड थोड़ा और अंदर घुसा और फिर एक स्टेज पर वो घुसा रुक गया. नवीन इस फील्ड में नया था. जैसे ही लण्ड घुसना बंद किया उसने धक्का देना बंद कर दिया....फिर वो उतना ही लण्ड अंदर घुसाए घुसाए मुझसे चिपक कर लेट गया और मुझे अपनी गर्म साँसों से गुदगुदाता रहा. मगर मैं मस्ती में था. मैं अब अपने छेद को ढीला करके कसके उसको मज़ा देता रहा और उसके मोटे लण्ड का मज़ा लेता रहा.

काफी देर के बाद नवीन कुछ बोला 'क्यूँ तुम यही चाहते थे ना?' उसने पूछा 'आह हाँ' मैंने आह भरते हुए जवाब दिया 'साले लौड़ा गन्दा करवा दिया बहनचोद' 'कोई बात नहीं साफ़ कर लेना' 'साले गांडू तुझसे ही साफ़ करवाऊंगा ये सब गन्दगी' 'उह्हह अच्छा मैं कर दूंगा' 'तेरे मुंह में दे दूंगा लौड़ा' उसने कहा. 'तुम इतनी गाली क्यूँ देते हो' मैंने पूछा 'साले तेरा ये सब काम ही गाली खाने वाला है...साला हिजड़ा' उसने फिर मुझे गाली दी 'क्यूँ तुम्हे मज़ा नहीं आ रहा है?' 'बहन के लौड़े जब लौड़ा छेद के भीतर होगा तो मज़ा मिलेगा ही...' 'अच्छा तुम्हे तो भाभी का बड़ा छेद पसंद है ना' मैंने उसको एक तरह से उस रात की याद दिलाई 'चुप कर साले...वो तो बस ऐसे ही हो गया था' 'अच्छा बेटा मौका मिलता तो अंदर घुसकर पेलने लगते' 'अब ऐसा भी नहीं है' 'ऐसा ही है यार झूठ क्यूँ बोल रहा है...क्यूँ अगर थोड़ी देर और देखता तो चोदने का मूड नहीं होता तेरा?' मैंने कहा तो वो बोला 'अबे कम से कम तेरी तरह गांढ़ तो नहीं मरवा रहा था ना' 'हाहा...अब ये तो समय बताएगा किसकी तरह क्या करवाता' मैंने उसको पिछली रात का याद दिलाया...'रहने दे...तू बता गांढ़ में लण्ड लेकर मस्ती में है ना?' 'उह्हह हाँ बहुत' 'लौड़ा तगड़ा लगा तुझे?' 'तेरा लण्ड मुझे हमेशा पसंद था यार' 'तभी तो दे रहा हूँ गांडू आह...तू सच बहुत बड़ा वाला गांडू निकला यार...मुझे ये उम्मीद नहीं थी' 'दे ना नवीन...मेरी गांढ़ मार खूब' 'हाँ भोसड़ी वाले अब तो तेरी गांढ़ का खूब बैंड बजाऊंगा बहनचोद....आआह्ह्ह्ह' उसने कहा और अब खुद से ही अपने लण्ड को मेरी गांढ़ के अंदर बाहर करके मुझे चोदने लगा....कुछ देर बाद मैं नीचे हो गया और वो चोदते चोदते मेरे ऊपर चढ़ गया और तबियत से मुझे चोदने लगा.

फिर चोदते चोदते उसने कहा 'क्यूँ बेटा मस्ती में है ना?' 'आआअह्ह्ह्ह्ह्ह आआः हाँ' 'सही पेल रहा हूँ ना?' 'हाँ हाँ उह्ह्ह्ह हाँ' 'आः' उसने सिसकारी भरी और भरते हुए बोला 'साले अगर लण्ड पर तेरी गांढ़ का गू लगा तो तुझसे चटवा करसाफ़ करवाऊंगा बहन के लण्ड हाँ आह आह्हह्ह' वो अब गर्म हो रहा था...उसके अंदर का मर्द जग चुका था और अब वो मस्त मूड में था अब वो अपने लण्ड को पूरा सटीक जड़ तक मेरी गांढ़ में घुसा रहा था. अब मेरी गांढ़ उसके प्रहारों से झनझना रही थी. मेरा छेद काफी रगड़ खा गया था और अब गर्म हो गया था. उसकी चुदाई से मेरी गांढ़ हलकी हलकी दुखने लगी थी. वो अब चुदाई के दौरान भी गाली वाली देने लगा था. शायद उसको भी वैसी चुदाई में मज़ा आ रहा था.

मैंने पूछा 'क्यूँ भाभी की याद आ रही क्या?' मैंने जानबूझ कर फिर भाभी का ज़िक्र किया ताकि वो थोड़ा भड़के 'भाभी की नहीं मादरचोद तेरी बहन की याद आ रही है चक्के...बुला ला जा अपनी बहन बुला ला मस्त कर दूंगा पेलकर आह्ह्ह्ह' 'मेरी बहन क्यूँ साले पहले जा न अपने भाई की बीवी की चूत चोद ना जिसको परसों देख कर मुठ मार रहा था' मैं जान बूझ कर ये सब कह रहा तह ताकि उसको ध्यान रहे की मुझे सब याद है.

वो तबियत से ज़ोरदार धक्के लगा रहा था. हमने ध्यान नहीं दिया मगर उतनी ताबडतोड चुदाई के कारण बेड में चरमरा रहा था. वैसे नवीन के धक्कों में सौरभ और शिबली के धक्कों से ज़्यादा जान थी. नवीन के अंदर जानवर जैसी ताक़त थी. मुझे एक दो उसके धक्के मस्त कर रहे थे और दूसरा उसकी बातें.

'आआह्ह्ह्ह गांडू गांढ़ उठा ना थोड़ी' उसने मस्ती से भरकर कहा तो मैंने गांढ़ उठा दी 'आह्हह्ह हाँ ऐसे ही बहनचोद ऐसे ही उठा कर रख' वो अब पूरी वासना की मस्ती में था 'आआआह्ह्ह्ह्ह' उसकी सिस्कारियां तेज और दमदार थीं. उसको सेक्स का मज़ा लेना और देना आता था. 'तू साले बहुत बड़ा वाला छक्का है' उसने कहा 'चोद यार बस चोद डाल मुझे' 'हाँ गांडू चोद तो रहा हूँ...बोल अब अपनी बहन चुद्वायेगा न मुझसे?' 'उह्ह हाँ हाँ जो तू बोलेगा करूँगा' 'बहुत सही पेलूँगा तेरी बहन की बुर गुलाब की तरह खिल जायेगी मेरा लण्ड लेकर क्यूँ?' उसने फिर कहा 'उह हाँ यार मस्त रहेगी' 'ले गांडू ले लौड़ा ले साले तुने आज मेरा लौड़ा गन्दा करवा दिया...बहनचोद तुझे चटवा कर साफ़ करूँगा' 'हाँ हाँ नवीन जो दिल करे बोल देना जो बोलोगे मैं करूँगा' 'करेगा तो तू ज़रूर बहनचोद' उसके बाद वो चुपचाप मुझे चोदने में लगा रहा. फिर उसके धक्के बढ़ने लगे और साथ में उसकी सिस्कारियां. कुछ देर वो उसी तेज़ स्पीड में चोदता रहा. मैं तो इतना मस्त हो गया कि बता नहीं सकता. अब मैं पूरे जोश से गांढ़ ऊपर उठा रहा था. मेरा छेद पूरा खुल चुका था. नवीन की जांघ हर बार मेरी जाँघों से टकरा रही थी...वो मुझे ज़बरदस्त तरीके से जकड़े हुए था और मुझे उसके हर धक्के में उसका लण्ड अपनी गांढ़ में बहुत अंदर तक टकराता हुआ महसूस हो रहा था. फिर वो चोदते चोदते धक्कों से साथ कहराने लगा. तेज़ सिस्कारियां भरने लगा.

'उह क्या हुआ नवीन झड रहा है क्या?' मैंने पूछा तो उसने मेरा सर तकिया में घुसा दिया 'चुप बे बहनचोद चुप बोल मत अभी गांडू चुप रे साले तेरी बहन की बुर आआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह....सालेह्ह्ह्ह्ह्ह उह्ह्ह्ह' मैं समझ गया की अब उसकी वासना अपने चरम पर है...फिर वो जैसे लगभग चीखने लगा 'उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आआआआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ह्ह्ह्हाआह्ह्ह्ह्ह सिआअह्ह्ह्ह्ह्ह' और उसका लण्ड किसी बुलडोज़र की तरह मेरी गांढ़ के छेद में उछलने लगा....मुझे उसका गर्म गर्म वीर्य महसूस हुआ' 'सिआह्ह्ह्ह्ह' मैंने भी सिसकारी भरी नवीन काफी देर तक उसी स्पीड और ताक़त से धक्के देता रहा और उसका लण्ड उसी इंटेंसिटी से मेरी गांढ़ में फूलता रहा....फिर नवीन मेरे ऊपर लेट गया. जब वो लेट भी गया तब भी रह रह कर उसके लण्ड में उछाल आ जाता था...और कुछ देर में उसका वीर्य मेरी गांढ़ से बाहर रिसने लगा...तब वो हलके से कह्राया...जैसे उसको कहीं दर्द हो रहा हो. उसने कुछ कहा नहीं.

नवीन का लण्ड झड़ने के बाद भी ज़्यादा ढीला नहीं पड़ा. मगर अब बाहर से आवाजें आने लगी थीं...टाइम देखा...हमारे सेक्स का सेशन लगभग दो घंटे चला था क्यूंकि आठ बजने वाले थे...फिर जब दरवाज़े पर मोहित की आवाज़ आई तो हम उठ गए...और नवीन बाथरूम चला गया. मैंने कपड़े पहन लिए और चाय लेने बाहर गया...बाहर निकलते ही मेरी नज़ उमंग पर पड़ी. गांढ़ में नवीन का वीर्य भरवाने के बाद उमंग और भी ज़्यादा मस्त लगा...हम एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए और मैं उसके साथ बैठ कर चाय पीने लगा...कुछ देर में मोहित भी आ गया. वैसे उस वक्त तो गोरा चिट्टा मोहित भी खूबसूरत लग रहा था...मैं ये सोहने लगा कि वो सेक्स में पता नहीं कैसा होगा. बातों से पता चला की मोहित को अपने कॉलेज जाना था. 'तुम चलोगे?' उसने उमंग से पूछा 'नहीं भईया हम रूम पर अकेले बोर हो जायेंगे हम यहीं रहेंगे' उसने बचकानी जिद के साथ कहा 'ठीक है तुम यहीं रहो' कुछ देर में नवीन भी आ गया और मैंने भी नहा लिया...फिर सबने साथ बैठकर नाश्ता किया. मेरे तो मन में बहुत गुदगुदी हो रही थी. नवीन के भईया का घर मेरे लिए बहुत लकी साबित हुआ था. तभी मेरे लिए एक फोन आ गया. पता चला मैंने अपने फोन के लिए जो मेमोरी कार्ड मंगाया था उसकी डेलिवेरी आ गयी थी. मैंने कोरियर वाले से कहा कि वो उसको वापस न भेजे और जब मैं आऊंगा उसके ऑफिस से ले लूँगा. मोहित ने भी ऑफर दिया 'मैं ले लूँगा जाकर भईया' 'ठीक है तुम्हे टाइम मिले तो तुम ले लेना यार प्लीज़ वरना साला वापस कर देगा' अब मेरा वो टेंशन भी खत्म हो गया. बातचीत में पता चला की उमंग दिल्ली बस कुछ ही दिन और है और उसको घूमने का बहुत शौक़ है. फिर भाभी को याद आया की उनको नोयडा मार्केट से जाकर बहुत सामान लाना है...उन्होंने पहले उमंग को साथ चलने को कहा...मगर फिर आइडिया आया तो नवीन से बोलीं 'देवर जी आप ही चलिए ना...गाडी निकल लीजिए बहुत सामान लेना है' 'जी भाभी' नवीन ने कहा तो उन तीनों का ही जाने का प्लान बन गया....फिर मैंने भी साथ लटकने का प्लान बना लिया.

फिर भाभी को याद आया की उनका झाड़ू वाला लड़का आएगा. अब मुझे रुकने को कहा...और उसी बीच उमंग ने भी तबियत सही न होने का बहाना किया और उसने भी कहा कि वो मेरे साथ घर पर रुक जायेगा 'आपको कितना टाइम लगेगा?' उसने भाभी से पूछा 'अरे दूर जाना है तीन चार घंटा तो लगेगा' 'नहीं बाबा मैं इतनी देर नहीं जाऊंगा मैं घर पर ही रहूँगा' इसके पहले नवीन कुछ कह पाता भाभी ने कहा 'ठीक है तुम जुनैद भईया के साथ घर पर ही रहो' उसके बाद वो लोग निकलने की तैयारी करने लगे. उमगं ने मुझे देखकर बड़ी चंचल सी सेक्सी मुस्कान दी. मेरा दिल फिर उसपर आ गया. अब मुझे शायद उसकी जवानी चखने का पूरा मौका मिलने वाला था. उसके साथ घर पर अकेले रहने के ख्याल ने ही मुझे इतने सेक्स के बावाजूद फिर कामुक कर दिया था.

भाभी जाने के लिए बैग्स वगेराह ढूँढने लगीं. मैं टीवी देखने लगा. नवीन फैशन करने लगा. मैंने ध्यान से देखा वो उस दिन कुछ कुछ टांगें फैला कर चल रहा था जो शायद सील तुडवाने का असर था. मुझे तब तक ये नहीं पता चल पाया था की उसको इस बात का ध्यान था भी कि नहीं. मगर अब मुझे वो बहुत नमकीन और सेक्सी लगने लगा था. जो लड़का पहले से पसंद हो सेक्स के बाद और ज़्यादा अच्छा लगने लगता है और उसके जिस्म पर से नज़रें हट नहीं पातीं.

तभी शिबली का फोन आ गया और मैं उससे बातें करने लगा. पहले तो उसने नोर्मल बातचीत करी. वो अपने ऑफिस में था. फिर अचानक उसने पूछा 'तू आएगा कब?' तो मैंने जवाब दिया 'आ जाऊँगा ना जब नवीन के भैय्या आ जायेंगे' इसपे वो बोला 'जल्दी आजा जानेमन...तेरी लेने का बहुत मूड हो रहा है' मैंने इधर उधर देखा फिर हलके से फोन पर बोला 'हाँ बाबा आ जाऊँगा ना...मेरा भी दिल है' तो वो बोला 'तेरा तो होगा ही मेरी जान...जल्दी आजा तू मेरी हालत समझ नहीं पा रहा है...सौरभ भी तुझे बहुत याद कर रहा है हाहाहा' 'उह अच्छा...मैं भी यहाँ से जल्दी निकलना चाहता हूँ, दिल नहीं लग रहा है' मैंने ऐसे ही झूठ बोला ताकि उसको कुछ शक ना हो...इतने में नवीन आ गया तो मैं शिबली से फिर नोर्मल बातें करने लगा. कुछ देर नवीन ने भी उससे बातें करीं...फिर वो फोन मुझे दे कर चला गया. उसके जाने के बाद मेरा शिबली की बातों में ध्यान नहीं लगा...क्यूंकि अब मैं और उमंग घर में अकेले थे.

'अच्छा चल बाद में करता हूँ' मैंने शिबली को कहकर फोन काटा...फिर उमंग की तरफ देखा. उसके चेहरे और आँखों में एक चुलबुली सी खटमिट्ठी मस्ती दिखी. वो मुझे अब बहुत ज़्यादा नमकीन लग रहा था...साले को खा जाने का दिल कर रहा था. वो चुपचाप सोफे पर मेरे बगल में बैठ गया. कुछ देर हमने कोई बात नहीं करी...बस अपनी अपनी साँसों पर काबू पाते रहे. उसने एक दो बार मेरी तरफ देखा और नर्वस सी स्माइल दी...वो मेरे बगल में था...हमारे बीच की जगह पर उसका हाथ था...मैंने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया. पहले सिर्फ रखा. उसने फिर मुझे देखा और मुस्कुराया. जब वो मुस्कुराया तो मैंने उसके हाथ को अपनी उँगलियों से सहलाया. मेरे अंदर एक ताज़ी हवा का झोंका उमड़ने लगा था. मैंने साइड में बैठे उस कमसिन से लौंडे को देखा...उस वक्त तो वो मुझे और भी ज़्यादा सुंदर लग रहा था. उसकी जांघें सुडौल थीं. मैंने उसका हाथ खींचा 'आओ थोड़ा पास में बैठो' वो पास खिसक गया मगर बोला 'पास में ही तो हैं भैया' 'इधर देखो' मैंने उसका चेहरा अपनी तरफ करवाया और बस कुछ देर एकटक उसको देखता रहा...'क्या देख रहे हैं भईया?' उसने नर्वस सी कामुकता के साथ कांपते होठों और आवाज़ से पूछा.

'तुम हो बहुत सौलिड आइटम' मैंने वैसे ही देखते हुए कहा 'अच्छा हेहेहे' वो फिर नर्वस होकर हंसा 'क्यूँ?' 'वो भी अभी पता चल जायेगा...एक बात बताओ?' 'क्या?' 'कल छत पर कितना मज़ा आया था?' 'उह...हम्म्म्म....सच बताएं?' 'हाँ' 'बहुत आया था' उसने मुस्कुराते हुए कहा 'और आपको?' उसने पूछा 'मुझे उससे भी ज़्यादा' मैंने जवाब दिया तो उसने फिर पूछा 'कल आपके और नवीन भैय्या के साथ फिर कुछ हुआ था क्या?' 'क्यूँ?' 'ऐसे ही...बताइए ना...हुआ था क्या?' 'क्यूँ तुम्हे भी कुछ करना है क्या उसके साथ?' 'न बाबा...उनको बताइयेगा भी मत प्लीज़...मेरी मर जायेगी हाहाहा' 'हाहाहा' मैं भी हंसा और हँसते हुए बोला 'तुम्हारी तो वैसे भी मरेगी हाहा' 'वैसे ठीक है...मगर नवीन भैय्या को मत कहियेगा प्लीज़' 'मैं ये सब बातें नहीं शेयर करता किस्सी से' 'बताइए ना कल भी कुछ हुआ था' 'हाँ सब कुछ' 'वाओ...क्या क्या' 'लो फोन पर देखो' 'आपने फोटो खींची' मैंने उसको अपना फोन दिया तो देखने में उसके हाथ काँप रहे थे और अनखेन खुली की खुली थीं. 'ये कौन है?' 'क्यूँ? मेरा लौड़ा नहीं पहचाने' मैंने उसकी जांघ सहलाते हुए कहा 'जी...उह...तो आपने नवीन भैया...' 'हाँ नवीन मुझसे मरवाता है खूब' 'उह वाओ...और आप?' 'कभी कभी मैं भी' कहते हुए मैंने उसको खींचा और अपनी जांघ पर बिठा लिया. 'तुम्हे नवीन पसंद है?' 'ह्म्म्म हाँ मगर इस सब के लिए नहीं' 'क्यूँ?' 'उनसे कभी इस तरह कुछ हुआ नहीं' 'तो क्या हुआ एक बार करो तो हो जायेगा हाहाहा' 'नहीं नहीं भैय्या' 'चलो रहने दो...तुम्हारी मर्ज़ी...वैसे बताओ दिल्ली घूमे नहीं अब तक तुम?' 'नहीं भैय्या...मोहित भैय्या ले ही नहीं जाते कहीं' 'अच्छा मैं घुमा दूंगा' 'हाँ वाओ...मगर भैय्या आपके साथ जाने की परमिशन नहीं मिलेगी' 'वो मैं ले लूँगा...सब जगह घुमा दूँगा' 'हाँ भैय्या' वो अब खुश दिख रहा था 'काश हमारा अड्मिशन यहीं कहीं हो जाता' ;तो ट्राई करो' 'अरे उसी लिए आये हैं...अगर हो जायेगा तो आपसे मिलना आसान हो जायेगा' 'कहाँ रहोगे?' 'अभी पता नहीं' 'हमारे साथ रह लेना...फिर सही रहेगा' 'काश भैय्या...अच्छा किसी को बताइयेगा नहीं कि हमने आपको बताया है कि हम यहाँ अड्मिशन के लिए आये हैं' 'क्यूँ?' 'सबने मना किया है किसी को बताने को' 'तो तुमने मुझे क्यूँ बताया?' अब वो चुप हो गया 'कोई बात नहीं...ये सब मेरे तुम्हारे बीच का का सीक्रेट रहेगा' कहते हुए मैंने उसकी जांघ पर हाथ फेरा और अपने होठों से टी शर्ट से दिखता उसकी गर्दन का ह्सैद चूमा तो वो भी तुरंत ही कामातुर होने लगा.

'उह्हह दीदी कब तक आएँगी?' उसने कंकपाते हुए पूछा 'उन्होंने बोला था की काफी टाइम लगेगा' मैंने उसको सोफे पर किया. उसका सर अब सोफे के हत्थे पर था और पैर नीचे थे जिसमे से एक पैर की जांघ अब मेरी जाँघों पर थी...मैंने सीधा उसकी ज़िप पर हथेली रख दी तो उसने मेरा वो हाथ पकड़ लिया. उसका लण्ड खड़ा था और मेरी हथेली की रगड़ से उछल रहा था. उसने मस्ती के कारण अपने होंठ सिकोड़ लिए थे और आँखों में नशा सा छा गया था. वो कामुकता से तमतमा कर बहुत सुंदर और पहले से कहीं ज़्यादा नमकीन लग रहा था. मेरी भी साँसें तेज़ चलने लगीं थीं. मुझसे नहीं रहा गया तो मैं उसके ऊपर झुका और मैंने उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए...अभी मैं बस उसके होठों को अपने होठों से सहला रहा था...तभी घंटी बजी.

'उह्ह' मैंने होंठ पोछते हुए कहा 'झाड़ू वाला होगा...रुको मैं आता हूँ' जब मैं उठा तो वो भी सही से बैठ गया और उसने भी अपना मुंह पोछा...मैंने दरवाज़ा खोला तो मुझे शौक लगा क्यूंकि सामने नवीन और भाभी खड़े मुस्कुरा रहे थे. इसके पहले मैं कुछ कहता नवीन खुद ही बोला 'अरे आधे रास्ते में भाभी को याद आया कि आज मार्केट बंद रहती है हाहाहा' पीछे से भाभी भी हँसती हुयी अंदर आ गयी. मुझे तो निराशा हुयी ही हुयी...उस दिन मुझे उमंग के चेहरे पर भी निराशा दिखी. मैं तुरंत कुछ करने की तिकढ़म लगाने लगा. ये साला उमंग को पाना बहुत मुश्किल होता जा रहा था. वो हर बार मेरे इतने करीब आता और हाथ से फिसल जाता. मेरा मूड ऑफ हो गया और मैं टीवी के सामने आँख बंद करके बैठ गया. फिर दिमाग में आइडिया आया.

'मैं सोच रहा हूं रूम का एक चक्कर लगा लूं' मैंने जानबूझ कर भाभी, नवीन और उमंग के सामने ये बात कही...और कहते में हलके से उमंग की तरफ देखा. लौंडा चतुर और दिमाग वाला था. मैंने देखा उसके होठों के कोने में एक बहुत दबी सी मुस्कान थी. 'क्यूँ क्या हो गया?' नवीन ने पूछा तो मैंने जवाब दिया 'यार मेरा कोरियर आया है अगर लिया नहीं तो वापस चला जायेगा' 'तो क्या हुआ उसको फोन कर दो रख लेगा' 'कर तो दिया है यार मगर पता नहीं उसका इसलिए सोच रहा हूँ जल्दी से जाकर ले लूं' 'इतने से काम के लिए इतनी दूर जाओगे' भाभी ने कहा और उसी बीच में उमंग बोला 'भैय्या मैं भी चलूँगा, मैं भी चलूँगा, मुझे भी ले चलिए' उस समय उसका वो उस तरह का बचकाना रूप देखकर उसकी गहराई कोई भी नहीं नाप सकता था...और फिर मोहित के कॉल ने मेरी किस्मत बदल दी. जब हमारी बातचीत चल ही रही थी तभी भाभी के फोन पर मोहित का फोन आया 'ओह अच्छा...तो...कहाँ...अच्छा...वहाँ...किट्टू...मगर...अच्छा...रुको रुको...हाँ बात करते हैं' कुछ समझ नहीं आया मगर इतना ज़रूर समझा की वो लोग उमंग की बात कर रहे हैं.

फिर भाभी ने फोन डिस्कनेक्ट किया. 'मोहित का फोन था...कह रहा था छोटे चाचाजी का कोई सामान उसके रूम पर है वो भेजना है मगर वो खुद फ्री नहीं है...तुम जाओगे क्या जुनैद?' उन्होंने मुझसे पूछा 'जी मगर मैं कैसे पहचानूँगा...' 'हम जानते हैं वो पैकेट' उमंग तुरंत बोला 'हमको पता है भैय्या ने वो कहाँ रखा है...हम भी चले जाएँ साथ में?' उमंग बहुत खुश और एक्साइटेड था 'अच्छा तुम जानते हो?' भाभी ने पूछा 'जी जी हम जानते हैं' 'तो तुम चले जाओ ना जुनैद भैया के साथ बैक पर' उमंग तो तुरंत तैयार हो गया...मगर मुझे कहानी सच्ची बनाने के लिए और नवीन का शक न जगाने के लिए थोड़ा नाटक करना पड़ा 'ये तंग तो नहीं करेगा' 'नहीं करेगा' नवीन खुद ही बोला 'अरे करे तो कान के नीचे एक बजाना' उसने हँसते हुए कहा. उसको क्या पता था कि मैं उमंग का क्या बजाना चाहता था!

'चलो तैयार हो जाओ' मैंने उमंग से कहा. 'खाना खाकर जाना लौटने में देर होगी' भाभी ने कहा.

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