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थोड़े दिन पश्चात् बावळे ने घर आ बताया कि

'उसकी बदली दूसरी जगह हो गई है' तो सुमन ने राहत की सांस ली. वो मन ही मन खुश हुई कि चलो चुड़ैल से पूरा पीछा छूट जाएगा. बेटा 6 साल का हो गया था. उसकी कोख में दूसरी संतान आ चुकी थी. सुमन की इच्छा थी कि उसके लड़की हो किंतु विधाता के लेख कभी को कोई नहीं जानता. दूसरी संतान भी बेटा ही हुआ. सुमन के जीवन में अब सब कुछ शांत सा चल रहा था. बड़ा बेटा प्रथम कक्षा में पढ़ रहा था. सुमन पूर्णतः अपने परिवार में रम चुकी थी. वो ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी किंतु घर को सुचारू रूप से चला रही थी. छोटा बेटा ढाई साल का हो गया था. तभी उसके पति की बदली जयपुर हो गई. सुमन खुश थी कि वह ससुराल के नज़दीक आ गई थी. उसकी सास की अपेक्षा उसके ससुर व ननदें उसका बहुत मान करते थे.

कहते है बुरे दिन पूछकर नहीं आते. बावळे को अभिनय का शौक था. वह अपने कार्यालय में होने वाले नाटक में भाग लेने लगा, साथ ही फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने लगा. धीरे-धीरे उसकी अदायगी के कारण अनेक निर्माता उसके साथ काम करने लगे. अच्छे रोल मिलने लगे किंतु साथ ही बावळा रंगीन मिज़ाज़ हो गया. वह दिखने में बहुत शालीन था किंतु सही मायने में उसे महिलाओं के साथ काम कर और उनको अपने पास पा आनंद की अनुभूति होने लगी. वह सुमन में कम रूचि लेता. उसका ज्यादातर वक़्त नाटक व फिल्मों के बहाने बाहर बीतने लगा. उसे शोहरत का नशा होने लगा था. उसे अपने बच्चों व पत्नी से कोई सरोकार नहीं था. पत्नी केवल भोग की वस्तु बन कर रह गई. दोनों बच्चे भी पिता को दुश्मन मानने लगे. घर का वातावरण पूर्णतः खराब होने लगा.

बच्चे बड़े हो गए. घर की परेशानियाँ बढ़ने लगी. आर्थिक परेशानी भी अपना मुंह खोले खड़ी थी. बच्चों के पढ़ाई पर खर्च के साथ-साथ बड़ा होने होने के साथ पारिवारिक जिम्मेदारियाँ भी बहुत थी. बावळे के पिताजी बहुत बीमार रहने लगे. उनके इलाज़ में काफी पैसा खर्च हो रहा था. शुक्र है पिताजी की पेंशन से आर्थिक मदद मिल रही थी. बावळे ने अनेक नाटकों में सराहनीय भूमिका अदा की थी जिसके कारण उसे कई पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया था. बावळा रंग-रूप में काला था, शक्ल भी ठीक-ठाक, हाथी जैसी आँखे, वह 5.11 का था, जिस कारण देखने में ठीक-ठाक लगता था. उसकी मूंछे उसकी स्वरूप को भव्य देती थी. उसकी आवाज़ अच्छी थी. इसके कारण हर कोई उससे प्रभावित हो जाता था. वह अपने दर्द को मुस्कुराहट से दबा देता था. वह अपने आप को पहलवान मानता था क्योंकि गांव की कुश्तियों में वह भाग लेता रहा था.

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