ओम ने अंतिम बार अपनी मैया को पुकारा उस वक्त नमो देवी साधना में थी लेकिन फिर भी ओम के पुकार सुनते ही नमोदेवी ओम के पास चली आई ओम अपनी मां की एक झलक देखते हैं अपने प्राण को त्याग दिया उस वक्त नमोदेवी ओम से काफी दूर थी नामोदेवी अपने पुत्र की ऐसी हालत देखती है जिससे नमोदेवी को अत्यधिक पीरा दे रहा था ओम को जमीन पर लेटे देख नामोदेवी का ह्रदय काप उठा फिर नामोदेवी धीरे-धीरे ओम के पास आई और वहां बैठकर ओम ओम के सर को अपने गोद में रख कर एकटक से देखती रही नमो देवी न कुछ बोलती और न रोती बिल्कुल शांत होकर ओम के पास बैठे रही आज एक माता को उसका पुत्र सादा के लिए छोड़कर जा चुका है यह बात नामोदेवी को अंदर ही अंदर तोड़ रही थी नामोदेवी इस बात को स्वीकार नहीं कर रही थी कि आज उनका पुत्र उन्हें सदा के लिए छोड़कर अब जा चुका है जिसने नामोदेवी ने अपने पुत्र के लिए ना जाने कितने असुर के सर काट दिया था आज वही नमो देवी बिल्कुल शांत होकर बैठी थी उस वक्त नमो देवी की आंखें क्रोध से लाल हो गई थी उनका रूप प्रचंड था ऐसा लग रहा था कि पूरी दुनिया में जल कर भस्म हो जाएगा लेकिन फिर भी नामोदेवी शांत हो कर बैठी थी ओम के आंखों से गिरा बिग आखों से गिरा जिसे अपने हथेली पर लेकर देख रही थी तब कालरात्रि को नमोदेवी के पीड़ा देखकर और वहां पर उपस्थि देव असुर और प्रत्येक जीवआत्मा जो वहा पर मैन हो कर खड़ा थे जिसे देख कर काल रात्रि को अत्यधिक क्रोध आया और अपने क्रोध में आकर सबसे पूछती हैं हे देवराज अपने स्वार्थ में आकर एक मां से उनका पुत्र छिन लिया क्या आपने उचित किया जिस मां ने अपने पुत्र के विवाह के सपने देखे थे आज उसके पुत्र उसके सामने शव के रूप मृत्य पड़ा हुआ क्या आप दोनों के आपसी विवाद के कारण हुआ है आप दोनों ने एक दूसरे को महाना सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए एक निर्दोष की बलि ली है जो उचित नहीं था इसलिए मैं कालरात्रि आप सबसे आपकी शक्ति छिनती हु जिस पर आपको इतना अहंकार था वह तमाम शक्तिया आपसे छिनती हु किसी के नियति तय करने का आज से आप किसी के भविष्य को ना बदल पाएंगे ना बना पाएगा और आपको किए कर्मों का फल आपको भोगना होगा तब कालरात्रि सभी देवों को एवं प्रत्येक जीवप्राणी श्राप देते हुए कहते हैं आज से और अभी से जो जैसा करेगा उसे वैसा ही भोगना पड़ेगा ओम के बनाए आठ चक्र से कर्म चक्र होगा जो सबकी नियति से ऊपर उसके परिणामों को देगा हर व्यक्ति के कर्म से निर्धारित की जाएगी बड़ा कोई नहीं कोई छोटा नही सब एक समान होगा जो पीड़ा आज आप ने नमो देवी को दिया है जो पीड़ा आपने मुझे दिया है इस पीड़ा का अनुभव आप सबको होगा और इस पीड़ा से आप सदा व्यतीत रहेंगे कभी स्वयं को मुक्त नहीं कर पाएंगे आज से परिशुद्ध प्रेम करेगा उसकी भी कहानी अधूरी रहेगी जैसे मेरी और ओमकी कहानी अधूरी रह गई भूल नहीं पाएंगे जिस तरह हमारी कहानी अधूरी रह गए किसी का भी प्रेम पूरा नहीं होगा जिस प्यार की पीड़ा में आज मैं जल रही हूं उसी आग में आज से आप सभी चलेंगे कभी सुख और चैन से अपना जीवन यापन नहीं कर पाएंगे हर पल यह पीड़ा का फूल आपको कभी सुकून से बैठने नहीं देगा इतना कहने के बाद कालरात्रि चक्र के केंद्र पर बैठे गई और कालचक्र ने अपना चलना आरंभ किया कालचक्र जब चलना आरंभ किया तभी ओम के शरीर से एक दिव्य ऊर्जा निकला और पूरे ब्रह्मांड में फैल गया उसका प्रकाश इतना अत्यधिक था जिसे खुली आंखों से देख भी नहीं पा रहा था उर्जापिण्ड सब की शक्तियों को अपने अंदर से खींचने लगा वहां पर उपस्थित सभी देवर धीरे-धीरे कमजोर होने लगे