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"Shivi": Cuteness overloaded

Author: Daoist743707
Realistic
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Synopsis

It is based on my true life incident. Showing harsh reality of India.

Chapter 1"Shivi": Cuteness overloaded

भाई चल यार movie चलते है' बहुत ज्यादा मन हो रहा है।

*नही यार मेरा मन नही है।*

अरे मै दिखा रहा हूँ चल...

*हाँ मेरे घर वालो ने तो निकाल दिया ना मुझे' बड़़ा रईसी झाड़ रहा है।*

अरे भाई तु तो घुस्सा गया। अच्छा अगर तुझे सच में घर से बाहर निकाल दे तो क्या करे भई तु???

*तो में जिन्दगी भर "उसके" पास रहूँ।*

"किसके"

*"उसके" रे...*

अरे हाँ समझ गया..

*चल मैं जा रहा हूँ।*

कहाँ???

*"उसके" पास...*

वाह यार भाई ऐसा मतलब...

*अरे मन हो गया यार याद आ रही है "उसकी" वैसे भी मेरा mood off है कल से, चल में तो चला...*

मैने bag उठाया और चल दिया अगले चौराहै से थोड़े fruits और पास ही bakery से वह सारा सामान लिया जो कभी मुझे बचपन में सपनो में आया करते थे। आप खुद अपने बचपन में जाकर अन्दाज़ा लगा सकते है। थोड़ी अजीब लाईन लग रही है ना, "आप खुद अपने बचपन में जाकर अन्दाजा लगा सकते है"... हायला हम बड़े हो गये जो बचपन में वापस जाना पड़ेगा। कुछ लोग तो अपने बचपन को लेकर ईस कदर जज़्बाती है कि मेरी ईस line के लिये मुझपर case कर सकते है। बोले तु बड़ा हो गया है ना सबुत बता। सबूत well सबुत का तो पता नही पर हां पहले जहां सपनो में chocolate और candy से भरे room आते थे अब उनकी जगह फिल्मो की कुछ अदाकाराओ ने ले ली है। if you know what i mean... 🙈

*"उसके" पास किसके पास???*

अरे नही शैतानो girlfriend वाली लाईन बनाई हि नही उपर वाले ने मेरे हाथो में या फिर बनाई भी है तो फिलहाल मैने उसपर पर्दा डाला हुआ है। यह तो 2 साल की एक छोटी, बहुत प्यारी सी बच्ची है, शिवी नाम है "उसका"। उसी की तरह cute नाम भी है उसका। षायद मेरी कलम की औकात में नही उसकी cuteness को बयां कर पाना। छोटी सि छोटा थोड़ा लम्बा मासुम सा चैहरा, बिखरे बाल किसी हेलमेट की तरह उसके सर पर जमे रहते है। in short बिलकुल किसी जापानी गुड़िया की तरह, देखते हि किसी को भी बहुत सारा प्यार प्यार आ जाये।

ये तो था उसके cute नैन-नक्ष का ब्यौरा, पर इसके साथ ही उसकी हरकते भी बहुत cute है। मासुमियत से एकदम silent बैठना, किसी bird की तरह टुकुर-टुकुर देखते रेहना, किसी बड़े के पैर छुना, नमस्ते करना और उतनी हि सादगी के साथ अपनी जगह पर आकर बैठ जाना। और हाँ "पैर छुना" जब डेढ़ फुट की शिवी अपने नन्है-नन्है कदमो से चलकर किसी के पास जाये और उसके पैर छुए तो मैं शब्दो में बयां नही कर सकता वह कितनी cute लगती है। cuteness overloaded, कोई भी बन्दा कदमो में आई इस मासुमियत को आशीर्वाद में सारी जायदाद भी दे दे तो कोई ताज्जुब की बात नही। शिवी ने आजतक शायद हि किसी को परैशान किया होगा, बहुत ही समझदार बच्ची है।

तो फिर क्यु उसके parents ने उसे नही अपनाया? किसी जानवर की तरह जन्म देकर, इस बेरहम दुनिया के हवाले छोड़ दिया?

मैं शिवी से एक अनाथ आश्रम में मिला था। डेढ़ साल की थी तब कोई उसे यहाँ छोड़ गया था... लगा ना shock??? जिस बच्ची के बारे में चार लाईन पढ़ने भर से वह आपकी गोद तक आकर खेलने लगी थी वह अगली हि दो लाईन में अनाथ हो गई। शिवी की मासुमियत के आगे अनाथ लगते हि दिल भर आता है। शिवी के नाम की cuteness उस वक्त जाती रेहती है जब पता चलता है कि उसे यह नाम उसके parents से नही बल्कि किसी धर्म विषेष के देवता की तरह हरकतो की वजह से समाज से मिला है। हरकते जैसे- बिल्कुल चुप रैहना, tv पर religious channels को एक-टक देखते रैहना, सिखे गये कुछ-एक मन्त्रो को पागलो की परह दोहराते रैहन। इतनी कम उम्र में इस तरह की हरकतो का होना किसा का भी ध्यान खिंच सकती है। यह सच है कि उसे देवता समान इस मान्यता से बहुत ज़्यादा प्यार और सम्मान मिलता है, पर अगर आप मुझसे पुछोगे तो मैं कहुंगा कि शिवी को autism नाम का neurodevelopmental disorder है। यह दिमाग के विकास के दौरान पेश आने वाली बिमारी है जो बच्चे के सामाजिक व्यवहार और सम्पर्क को प्रभावित करती है। इस बिमारी में बच्चे एक हि काम को बार-बार दोहराते रैहते है, वजह? उनके दिमाग का विकास किसी normal बच्चे के मुकाबले धिरे होता है, इसलिये वह बहुत कम बाते हि सिख पाते है और जो कुछ भी सिख लेते है अक्सर उसमें हि मशगुल रैहते है।

शायद देवता समान इन हरकतो की वजह से हि शिवी के पढ़े-लिखे parents ने उसे अपनाने से इन्कार कर दिया। वो जान गये थे कि उनकी बच्ची अनजाने हि अनचाही राह पर चल पड़ी है, अनचाही राह उनकी बच्ची के लिये के लिये नही, उनके लिये। एक तो लड़की, उपर से अनचाही ज़िन्दगी की शिकार। घर में बच्चे के जन्म लेते हि parents की दुरदृष्टि काम करना शुरू कर देती है। उनके बोलने का इन्तज़ार, चलने का इन्तज़ार, school-college जाने का इन्तज़ार, उसकी पसन्द-नापसन्द की फिक्र, उसकी शादी का ख्याल, यहाँ तक कि बच्चे को गोद में लेते हि उसके बच्चो का ख्याल भी parents के दिमाग में आ जाता है। अच्छी बात है, बहुत cute भी लगती है पर लड़की के जन्म के ज़िक्र भर से हि यह दुरदृष्टि सिधे दहैज को छलांग लगा देती है, गोद में लेना तो बहुत दुर की बात है। दहैज से आगे पिछे कुछ नही देखती ये दुरदृष्टि। अनाथ आश्रम भरे पड़े है लड़कियो से, छी... शर्मनाक है ऐसी सोच का होना।

मैं चौराहै पर हि fruits को अपने bag में भरने की बैकार कोशीश करने लगा। मैं bag adjust करने में मशगुल था, तभी मेरी नज़र आस-पास गुज़र रहै लोगो पर पड़ी। वह मुझे बहुत हैरानी से देख रहै थे, मानो सोच रहै हो, "शहर में कर्फ्यू पड़ने वाला है जो ये लड़का इस कदर दिल से सामान जुटाने में लगा हुआ है। बहुत कोशीश करने के बाद भी कुछ fruits मेरे हाथ में हि रह गये, मैं उन्है भी जबरजस्ती ठुसे जा रहा था। अन्दर बैठे 2-3 कैलो ने परैशान होकर आवाज़ लगाई, बोले भाई पहले हि गोद में अंगुर के चचा जान और संतरे के फुफा समेत पुरा खानदान बैठा है, अब उनके पड़ोसियो को भी जगह दे इतनी हिम्मत नही रह गई है, या तो भिड़ कम करो या फिर छिलके उतारकर नन्गा बैठा दो। मैने थोड़ा सामान हाथ में उठाया और local train जैसा bag उठा फिर से चल दिया। अबकि बार में सिधे आश्रम के सामने जाकर रूका और एक गहरी साँस ली। यहाँ आते हि एक अजीब सी feeling का एहसास होने लगता है। इजाज़त लेने और कुछ formalities पुरी करने के बाद मैंने बच्चो की तरफ रूख किया। अनाथ आश्रम का माहौल लगभग किसी school की तरह ही होता है, बस फर्क इतना होता है कि हर बार कुछ बच्चो के पुराने चैहरे नज़र नही आते वहीं कुछ नये बच्चो के चैहरे भी देखने को मिलते है। अक्सर movies में होता है कि कोई बन्दा अनाथ आश्रम जाता है और सारे बच्चे खुशी-खुशी उसके आस पास जमा हो जाते है यह देखने के लिये कि हमारै लिये क्या लाया गया है। पर हकिकत में ऐसा नही होता है। एक अच्छे अनाथ आश्रम में बाहर से लाई गई सारी चिज़ो को जमा कर बच्चो तक पहुँचाने से पहले उसे अच्छे से check किया जाता है, कि कही यह किसी तरह से बच्चो के लिये नुकसानदायक तो नही है। क्यो कि देखा जाये तो आश्रम को इनकी इनकी जरूरत भी नही होती है। दुनिया में ऐसे कई फरिश्ते है जो अनाथ आश्रमो में कभी सुखा नही पड़ने देते। बस कमी है तो उनकी जो इसमें रहने वाले बच्चो को अपने घर में जगह दे सके। ऐसा होता तो शायद अनाथ आश्रमो की जरूरत हि नही होती। यहाँ सवाल सिर्फ इन्सान के पत्थर दिल होने का नही जो उसे ऐसा करने से रोकता है, बल्कि सच कहुँ तो उन चन्द मजबुरियो का भी है जो हमें इन मासुमो को अपने घर तक लाने से रोकती है। "मेरे घर वाले मुझे निकाल दे तो मैं ज़िन्दगी भर "उसके" यानी "शिवी" के पास रहुँ... यह सिर्फ बोलने और लिख्रने की बात नही है, मेरा बस चले तो ज़िन्दगी भर शिवी की देखभाल में गुजा़र दु, पर!!! यह "पर" उन्ही मजबुरियों में से एक है जिनका ज़िक्र मैने उपर किया है। मजबुरियाँ है इसका मतलब यह नही कि हम कुछ नही कर सकते, पर सवाल यह है कि शुरूआत तो करै, किसी अनाथ आश्रम जाकर तो देखे आखिर वहाँ होता क्या है। हमारै आस-पास कितने हि आश्रम है पर हम नही जाते, इसलिये नही कि जाना नही चाहते बल्कि इसलिये कि कभी ध्यान हि नही गया। बच्चे तो उपर वालै की रहमत हाते है, निहायती बदनसिब है वो लोग जो इस रहमत को ठुकरा दे। क्या कर सकते है, यह इन्सानी फितरत का महज़ हिस्सा भर है। अगर कुछ कर सकते है तो यह कि, किसी एक की ठुकराई चिज़ को किसी जरूरतमन्द तक पहुँचाना या जितना बन सके कम से कम इस कोशीश का ख्याल रखना। अक्सर देखा जाता है कि अगर कोई इन्सान औलाद से महरूम है तो वह अपने आस-पड़ोस या relatives में से हि किसी बच्चे को adopt कर लेता है। मेरी नज़र में यह गलत है, इसके बजाय तो आप उस बच्चे को घर में लाईये जिसे सच में आपकी ज़रूरत है। अगर आप चाहै तो ऐसी किसी ज़रूरत को ज़रूरतमन्द तक पहुँचा सकते है। पर उसके लिये जरूरी है कि आप किसी अनाथ आश्रम को जानते हो। किसी और के लिये न सही अपने लिये जाईये। जब कभी बहुत ज़्यादा परैशान हो, upset हो तो उन बच्चो के बिच जाईये, शर्तिया आपकी सारी परैषानी, दुख-दर्द जाते रहैंगे।

*""तो अपना थोड़ा वक्त निकाल कर मासुमो को देना...*

*कभी करके देखो... अच्छा लगता है.."""*

बहरहाल मैं अन्दर गया, कुछ बच्चो से बतियाने लगा। दुनिया भर की बुराई से अन्जान ये बच्चे बड़ी ही प्यारी बाते करते है, उन्है शायद पता हि नही होता बुरा कैसे बोला जाता है। यह एहसास सिर्फ महसुस किया जा सकता है। कुछ देर बाद मेरी नज़रे शिवी को तलाशने लगी, मैं जानता था वह कहाँ मिलैगी, मैं उस ओर चल दिया। उस room तक जाते-जाते ही में flashback में पहुच गया और पुराने वो सारे moments याद करने लगा जब-जब में शिवी से मिला था। जैसे हि वहाँ पहुँचता था वह नज़ारा देखने को मिलता जिसके लिये मैं सबकुछ देने को तैयार हुँ। मेरे सामने एक नन्ही सी परी निचे मुँह करके मासुमियत से बैठी थी। मेरी आहट पाकर उसने मुझे देखा और फिर से नज़रे निची करली, 3-4 बार अपना सर हलाया और फिर से मेरी तरफ देखा, इस बार वह बिना नज़रे झुकाये मुझे देखती रही। उसने मुझे पहचान लिया मानो उसकी खामोश नज़रे मुझे बुला रही हो। अब मुझसे भी रहा ना गया मैं उसके पास जाकर बैठ गया और मानो सालो का प्यार इकट्ठा हि उसे दे दिया। लगता है हमैश उसके पास हि बैठा रहुँ, लोटने का मन हि नही करता। एक नशा सा है शिवी की मासुमियत मैं और मुझे इस नशे की भयंकर लत है। इसलिये जब कभी वक्त मिलता है मैं अगले हि पल शिवी के पास होता हुँ। बहरहाल में flashback से बाहर आया और उस room तक पहुँचा। पर मैं जब उस room तक पहुचा तो यह देखकर हैरान हुआ कि वह वहाँ नही थी जहाँ उसे होना चाहिये था। मैं बड़े हि सेहमे मन से उसे हर जगह ढुंढने लगा। थोड़ी तलाश और पुछताज के बाद पता चला कि शिवी को किसी ने adopt कर लिया है। मैं वहीं पर बैठ गया, मानो मैरे हाथ पैरो ने काम करना बन्द कर दिया, मैं कुछ देर के लिये सन्न रह गया। समझ नही आ रहा था अभी रोने लगु या फिर इस बात पर खुशी जाहिर करू। खुषी, गम, हैरानी, परैशानी से मिली-जुली बहुत हि अजीब feeling हो रही थी उस वक्त। "खुशी" इस बात की, कि शिवी को अपना घर मिल गया। "गम" इस बात का, कि मुझे उसकी बहुत ज्यादा याद आ रही थी और मैं उससे मिल नहीं पाया और पता नही अब कभी मिल पाउंगा या नही। "हैरानी" इस बात की, कि आखिर किसी एक इन्सान की इस तरह छोड़ी गई झुठन को कोई दुसरा क्यु अपनायेगा। और "परेशानी" इस बात की, कि क्या वाकई में शिवी को parents मिले है??? उसकी पुजा करके उसे पैसे कमाने का जरिया तो नही बनाया जायेगा। शायद मुझे इस तरह कि negative बाते नही सोचना चाहिये, पर शिवी से मेरे लगाव ने मुझे किसी पिता की तरह सोचने पर मजबुर कर दिया है। मेरी बेटी ढाई साल की उम्र में हि विदा हो गई। पता नही उसका अगला घर कैसा होगा। मेरा हर लम्हा उस मासुम के लिये दुआ करता है, दुआ करता है कि वह अपनी इस अनचाही ज़िन्दगी को छोड़ औरो की तरह जिने लगेगी।

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अब ये हम दोनो के बिच प्यार था या आकर्षण ये तो पता नही ,लेकिन जो भी था बहुत जबर्दस्त था । अब थोरे थोरे मेरे कदम भी लर्खराने लगे थे , मैने उसे बोला की अब चलते है ,मैने अभी पुरा बोला भी नही था की उसने अपनी उंगली मेरे लिप्स पे रख दी ,और बोली नही अभी नही अभी और , ये बोलते बोलते उसके कदम लर्खराने लगे थे,उसकी आँखे बन्द हो रही थी ,मेरे सिने पे उसने अपने सिर को रखा उसके हाथ मेरे गर्दन पर लिपटे थे,वो उपर आँखे कर के मुझे इक मदहोश नजरो से देख रही थी ।उसकी गरम सांसे मुझे बहुत ज्यादा रोमांचित कर रही थी , कुछ देर तक तो मै उसे ऐसे ही देखता रहा ।फिर मैने सोचा की अब हमे निकलना चाहिये ।मैने घरी देखी रात के 10बज चुके थे ,मैने सोचा हमे अब निकलना चाहिये ।

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