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वरदान एक चमत्कार

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जैसे ही उसने आखिरी निवाला उस फकीर ने खाया ,वो फकीर एक चमत्कारी देवता के रूप में बदल गया । उसने राजा को आशीर्वाद दिया हे, "राजन मैं तुम्हारे राज्य में तुम्हारे धर्म की परीक्षा लेने आया था ।" "तुम अपने धर्म में खरे उतरे इसलिए मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं, कि तुम्हें पुत्र प्रदान हो ।" "क्योंकि तुम्हारे भाग्य में संतान का सुख नहीं है , इसलिए पुत्र के जन्म के कुछ समय बाद तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।" " क्योंकि तुम्हारे राज्य की प्रजा ने मुझे देख कर घड़ा की और मुझ पर पत्थरों से बार किया ,इसके परिणाम तुम्हें भुगतना होगा।" "क्योंकि तुम प्रजा के पालनहार हो और इसीलिए तुम्हारी प्रजा जो भी कार्य करेगी उसका उसका फल या अशुभ फल तुम्हें यह तुम्हारे पुत्र को भुगतना पड़ेगा ।" और हां राजन तुम्हारा पुत्र बहुत ही पराक्रमी योद्धा होगा ।" " उसके सामने मनुष्य क्या देव दानव भी नहीं खड़े रहे सकेंगे। इतना बोल कर वह देवता अदृश्य हो गया।" कुछ दिनों बाद रानी के गर्भवती होने की सूचना पूरे राज्य में आप की लपटों की तरह फैल गई। महाराजा राजकुमार के आगमन के लिए बेसब्री से इंतजार करने लगे । धीरे-धीरे समय गुजरता गया और 9 महीने बाद राजकुमार का जन्म हुआ। वह बच्चा सूर्य के समान चमक रहा था, और चंद्रमा के समान उसके मुख पर तेज था। राजकुमार के जन्म पर खुशियों की हर तरफ उत्सव का माहौल था। राजा बहुत खुश था। उन्होंने बड़े बड़े पंडित को राजकुमार के नाम की नामकरण की विधि की। क्योंकि उनको राजकुमार फकीर के वरदान से मिला था, इसीलिए उन्होंने उसका नाम वरदान रखा । उसका नाम राजकुमार वरदान रखा गया गया। और दूसरी तरफ राजा के मंत्री और विद्रोही वरदान के जन्म से खुश नहीं थे। वह बच्चे को मारना चाहते थे। बच्चे को मारने की चालें चलने लगे। जब भी वे लोग राजकुमार के उसके आसपास जाते, कोई अदृश्य शक्ति उनको अपने इरादों में सफल नहीं होने देती थी। वरदान की सुरक्षा कवच बन कर उसकी रक्षा करती थी । वरदान 5 साल का होने वाला था । और राजा उसको युवराज घोषित करना चाहते थे। इससे पहले राजा ऐसा कर पाता, विद्रोहीऔ ने राजा की हत्या कर दी , और वो रानी और वरदान को भी मारने के लिए निकल गए । जैसे ही रानी को यह सब पता चला , रानी ने अपने बच्चे के साथ भेस बदल कर राज्य से भाग गई।

Chapter 1chapter 1

Chapter = 1

बहुत समय पहले एक राजा हुआ करता था।

राजा बहुत ही धर्मी और पराक्रमी था ।

उसके राज्य में हर तरफ खुशहाली छाई हुई थी ।

उसकी प्रजा बहुत ही सुखी और समृद्ध थी।

उसकी प्रजा राजा का बहुत सम्मान करती थी।

राजा भी अपनी प्रजा को अपनी संतान

के समान प्रेम करता था।

चूकि राजा के एक भी संतान नहीं थी।

इसलिए राजा बहुत दुखी और उदास रहता था ।

उसने अपनी प्रजा को ही अपनी संतान मान लिया था।

राज्य पाठ संभालने के लिए, राजा को एक बारीश  चाहिए था ।

क्योंकि राजा बहुत बुढा हो गया था ।

और उसके अभी तक कोई पुत्र नहीं था।

उसके मंत्रीगण , विरोधी राजा के मरने का इंतजार कर रहे थे ।

वेनितनई  सादिश  रचते थे ।

क्योंकि राजा के कोई पुत्र नहीं था , इसलिए राजा के मरते ही वह राज्य पर कब्जा करना चाहते थे।

राजा यह सब जानते हुए भी कुछ नहीं कर सकता था।

बस भगवान से प्रार्थना करता रहता भगवान उसे एक बारिश दे दे , जिससे वह अपने पुरखों के राज्य को गद्दारों के हाथ में जाने से बचा सके।

==========

1 दिन उस राज्य में एक फकीर आया।

  उसके कपड़े फटे हुए थे,  उसके शरीर पर घाव लगे हुए थे , उसके घाव से खून और मवाद टपक रहा था ।

उसके शरीर से बदबू आ रही थी ।

वह देखने से बहुत ही घृणित और डरावना लग रहा था ।

बच्चे उसको देख कर डर से भाग रहे थे ।

और बड़े उसको मारकर भगाने की कोशिश कर रहे थे।

लोग उसको पत्थर मार रहे थे ।

उसी समय वहां से राजा की सवारी निकली ।

राजा के सैनिकों ने जब उस फकीर को देखा तो , उसे मारकर भगाने लगे।

जब राजा ने यह हलचल सुनी तो , वह तुरंत अपने रथ से नीचे उतर आया।

और उस फकीर के पास चला गया , राजा हाथ जोड़कर फकीर के सामने आदर से खड़ा हुआ ।

और बड़े सम्मान से उस फकीर को अपने रथ में बिठाया ।

और खुद उसके चरणों में बैठ गया।

फिर उसने अपने लोगों से उन्हें महल में ले जाने के लिए कहा ।

महल में आकर राजा ने फकीर को गरम पानी नहलाया  और उसके घाव की मरहम पट्टी कारी ।

उसको नए कपड़े पिनाऐ  ,और उसके बाद राजा ने फकीर को बड़े सम्मान से अपने हाथों से भोजन खिलाया।

राजा के दरबारी और प्रजा यह सब देख कर बड़े अपने राजा के बारे में कानाफूसी कर रही थी।

उनको लग रहा था  उनके महाराज दिमागी  तौर पर पागल है

राजा उन सब की बातों को नजरअंदाज करके अब अपना कर्तव्य पूरी इमानदारी से निभा रहा था ।

वे  फकीर को भोजन खिला रहे थे, जैसे ही आखिरी निवाला उस फकीर ने खाया ,वो  फकीर  एक चमत्कारी देवता के रूप में बदल गया ।

उसने राजा को आशीर्वाद दिया हे, राजन मैं तुम्हारे राज्य में तुम्हारे धर्म की परीक्षा लेने आया था ।

तुम अपने धर्म में खरे उतरे इसलिए मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं, कि  तुम्हें पुत्र प्रदान  हो ।

क्योंकि तुम्हारे भाग्य में संतान का सुख नहीं है , इसलिए पुत्र के जन्म के कुछ  समय बाद तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।

क्योंकि तुम्हारे राज्य की प्रजा ने मुझे देख कर घड़ा की और मुझ पर पत्थरों से बार किया ,इसके  परिणाम तुम्हें भुगतना होगा।

क्योंकि  तुम प्रजा के पालनहार हो और इसीलिए तुम्हारी प्रजा   जो भी कार्य करेगी उसका  उसका फल या अशुभ फल तुम्हें यह तुम्हारे पुत्र को भुगतना पड़ेगा ।

और हां राजन तुम्हारा पुत्र बहुत ही पराक्रमी योद्धा होगा ।

उसके सामने मनुष्य क्या देव दानव भी नहीं  खड़े  रहे सकेंगे। इतना बोल कर वह देवता अदृश्य हो गया।

कुछ दिनों बाद रानी के गर्भवती होने की सूचना पूरे राज्य में आप की लपटों की तरह फैल गई।

महाराजा राजकुमार के आगमन के लिए बेसब्री से इंतजार करने लगे ।

धीरे-धीरे समय गुजरता गया और 9 महीने बाद राजकुमार का जन्म हुआ।

वह बच्चा सूर्य के समान चमक रहा था, और चंद्रमा के समान उसके मुख पर तेज था।

राजकुमार के जन्म पर खुशियों की हर तरफ utsab का माहौल था।

राजा बहुत खुश था।

उन्होंने बड़े बड़े पंडित को राजकुमार के नाम की नामकरण की विधि की।

क्योंकि उनको राजकुमार फकीर के  वरदान से मिला था, इसीलिए उन्होंने उसका नाम वरदान रखा ।

उसका नाम राजकुमार  वरदान रखा गया गया।

और दूसरी तरफ राजा के मंत्री और विद्रोही वरदान के जन्म से खुश नहीं थे।

वह बच्चे को मारना चाहते थे।

बच्चे को मारने की चालें चलने लगे।

जब भी वे लोग राजकुमार के उसके आसपास जाते, कोई अदृश्य शक्ति उनको अपने इरादों में सफल नहीं होने देती थी।

वरदान की सुरक्षा कवच बन कर उसकी र रक्षा करती थी ।

वरदान 5 साल का होने वाला था

और राजा उसको युवराज घोषित करना चाहते थे।

इससे पहले राजा ऐसा कर पाता, विद्रोहीऔ ने राजा की हत्या कर दी ,  और वो रानी और वरदान  को भी मारने के लिए निकल गए ।

जैसे ही रानी को यह सब पता चला , रानी ने अपने बच्चे के साथ भेस बदल कर राज्य से भगा गई।

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रानी के भागने की खबर जैसे ही मंत्री को पता चला उन्होंने राजा की हत्या का आरोप रानी के ऊपर लगा दिया ।

और उसे जहां भी देखने पर उसे और उसके बेटे को जान से मारने का फरमान दिया।

रानी अपने बेटे को लेकर एक राज्य में पहुंच गई,  वहां आकर लोगों के घरों में झाड़ू पोछा कर कर अपने बच्चे का और अपना पेट पालने लगी ।

रानी लोगों के ताने और गालियां सुनती  फिर भी अपने बेटे का बड़े अच्छे से पालन पोषण कर रही थी।

मंत्री के सैनिक उन दोनों मां-बेटे को हर राज्य में खोज रहे थे ।

हर जगह से लोग उसे निकाल देते थे, कोई भी उस मां बेटे को अपने घर में आसरा नहीं देना चाहता था ।

यहां तक की रानी के स्वयं भाइयों ने भी उसकी मदद नहीं की।

जब रानी अपने भाइयों के पास पहुंची तो उन्होंने उसे, मंत्री को सौंप दिया ।

रानी को अपनी इज्जत का सौदा करने के लिए कहां पर रानी ने उसकी एक बात ना सुनी वह अपने कुछ वफादार आदमियों के साथ मिलकर मंत्री के राज्य से भाग गई ।

वह बेचारी अपने बेटे को लेकर दर-दर भटकती रही , किसी ने भी उन दोनों की मदद नहीं की।

रानी मजबूर और हार कर आत्महत्या करना चाहती थी ।

और इसके लिए उसने एक नदी के किनारे चलने का फैसला किया।

वह  एक सुनसान जंगल में नदी के किनारे पहुंच गई, और उसने हाथ जोड़कर प्रार्थना की।

हे देवता आपकी कृपा से हमें वरदान प्राप्त हुआ अब मैं अपने पुत्र के साथ आप की शरण में आ रही हूं हे देवता मुझे  और मेरे पुत्र को अपने शरण में लो।

इतना कहकर उसने वरदान को गोद में उठाया और नदी में छलांग लगा दी ।

पानी में गिरते ही रानी बेहोश हो गई ,Vardan पानी में खेल रहा था।

बहते - बहते दोनों मां-बेटे किसी दूसरे राज्य में पहुंच गए !

भगवान की कृपा से उन दोनों को नदी के बहाव ने उस राज्य के किनारे पर पहुंचा दिया था ।

जब लोगों ने एक औरत को 1 बच्चे के साथ किनारे पर  देखा तो उन्होंने उसकी मदद की और दोनों मां-बेटे को गांव के स्कूल में  साफ सफाई करने के लिए रख लिया ।

और उन्होंने उन दोनों मां-बेटे के लिए एक छोटी सी झोपड़ी बना दी ।

रानी दिन में साफ सफाई करती और रात में लोगों के कपड़े सिलती थी।

क्योंकि वरदान अभी छोटा था।

वह  अपने दोस्तों के साथ बाहर खेलता रहता था।

वर्धन के पास  दो मणिया थी ,जिन से वह दिन में गोटिया खेलता था ।

और रात में उन्हें अपने घर की दीवार पर रखकर  उजाला करता।

उन दोनों मां-बेटे को मणियों की शक्ति और कीमत का कोई अंदाजा ही नहीं था।

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