3 3. वह कौआ

प्रतिदिन मैं सुबह जल्दी ही उठ जाता हूं । लेकिन उन दिनों गर्मी का मौसम था और रात में बारिश भी हुई थी। जिसके ‌कारण मुझे सुबह उठने में देरी हो गई । मैं बिस्तर छोड़ स्कूल के लिए तैयार होने में तत्पर हो गया । तभी एक कौआ हमारे घर कि खिड़की पर आ बैठा । उसके बाद लगातार काऊं काऊं करने लगा । मैंने उसे भगाने कि कोशिश की , पर वह नहीं भागा ।

हम मनुष्य भी कितने विचित्र प्राणी है । जो चिज़ हमें पसंद होती है , हम उसे पाने के लिए जी जान लगा देते हैं । इसी प्रकार हम हर रोज़ ही कितने परिंदों को पिंजरे में कैद कर लेते हैं । कई अलग अलग प्रकार के परिंदें , जिनके मर्जी के खिलाफ हम अपनी आंतरिक खुशी के लिए उन्हें कैद करते हैं । लेकिन वही कौआ जैसा सामाजिक पक्षी उपेक्षित होता है।

कौए को लोग केवल उसकी कर्कश आवाज के लिए जानते हैं । लेकिन वही कौआ वर्ष के कुछ दिनों में पूज्य होता है । जब पितर पक्ष का समय आता है। लोग कौए के प्रति सहिष्णु हो जाते हैं। उसे बुलाने के लिए उसी कर्कश आवाज में वे लोग शोर मचाते हैं , जो आवाज उन्हें वर्षभर चुभती है । यह हम मनुष्यों कि विचित्रता नहीं तो और क्या है ?

उस दिन उस कौए कि कौउं कौउं में एक अलग ही बात थी । जो मेरे अंतरात्मा तक जा पहुंची थी । मैंने उस कौए को ध्यानपूर्वक देखा । वह मेरी ओर करुणा के भाव में देख रहा था । तब मैंने सोचा हो सकता है कि इसे गर्मी के कारण प्यास लगी हो । मैं रसोई घर कि तरफ दौड़ कर गया । एक कटोरी में मैंने पानी निकाल कर उस कौए को दे दिया ।

पहले कुछ क्षण कौए ने मेरी ओर देखा । उसके बाद उसने पानी पिया और जमीन पर आ गिरा । मैं आश्चर्य से उस कौए को देखता ही रह गया ।

‌मैने उसे बचाने कि कोशिश की , लेकिन वह कौआ सो चुका था एक नये सफ़र के लिए । फिर किसी कि मनोस्थिति को विचारशील गति देने के लिए ।

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