अाज मैं ज़िन्दगी के उस मोड़ पर हूँ जहाँ से मुझे कोई रास्ता नज़र नही आता की मैं क्या करूँ क्या नहीं । अजीब सी कशमकश में आ खड़ी हूँ अाज दिल कर रहा है आत्महत्या करलु ।
बार बार मन में यही ख्याल आरहा कि मैं क्यों ज़िन्दा हूँ ...
किसके लिए ?
बस बहुत होगया अब नहीं सहा जाएगा रोज़ एक नयी परेशानी रोज़ एक नयी आजमाईश ,थक गयी हूँ , बस सोना चाहती हूँ सुकून की नींद हमेशा केे लिए..... कोई सुनने वाला नही ,कोई पूछने वाला नही ,क्या एक तलाकशुदा को जीने का हक नहीं है।
आयेशा ये सबकुछ खुद से पूछ रही थी क्यूंकि उसके अकेले पन की बस वही साथी थी , वो रो रो कर बस अपने रब से शिकायते कर रही थी, वो अाज हार चुकी है इस दुनिया से ,उसका कोई सहारा नही ,माँ बाप ने तलाक के बाद उसे अकेला छोड़ दिया था ।
कम उम्र में शादी होजाना फिर पढाई छुट जाने जैसे बहोत सी ऐसी चीज़ हुयी जिसे वो झेलती आयी थी अकेले हर मुश्किल का सामना कर रही थी ,
वो एक किराए के मकान में पिछले 5 साल से रहती आरही थी
अब उसके पास इतने पैसे भी नहीं है की वो किराया दे ...
उसका मकान मलिक उसे जाने को बोल रहा है , आखिर कहाँ से लाए वो पैसे किराए के लिए , नौकरी नही है उसके पास ,ना फैमिली सपोर्ट है ,
माँ से उसकी कभी बनी नहीं क्यूंकि माँ ने कभी उसको अपनी बेटी समझा नही ! बोझ थी बस वो एक .....!"
रोते हुए उसने एक आस में फिर अपनी माँ को फ़ोन लगाया
हेलो ..
हेलो अम्मी ....
हाँ बोल
अम्मी मैं बहोत परेशान हूँ , घर में कुछ खाने को नही है
मकान मालिक कमरा खाली करने को बोल रहा है बार बार
पैसे नही है अब कुछ भी
कुछ सुन रही हो ?
आगे से जवाब आया हाँ हाँ सब सुनने को बैठी हूँ तेरा
तूने जैसा किया है , भुगत हम क्या कर सकते है इसमें
हमसे उम्मीद मत रखो तुम कुछ ..'!
और फ़ोन काट दिया
आयशा फिर से ज़ोर ज़ोर से रोने लगी
" या मेरे अल्लाह तू देख रहा है ना लोगो के ज़ुलम तू मुझे अपने पास बुला ले मुझपे बस इतना एहसान करदे "
इतना कहते कहते वो फुट फुट कर रोने लगी ..!"
अब आयेशा क्या करेगी ......