1 वो काली रात

सांसे फुल रही थी फिर भी मैं भागा जा रहा था । पता नही कहीं दूर व्हौत दूर ।बस रुकना नही था ।चलते जाना था ।रास्ते के किनारे उंचे खम्बो पर बल्ब जल रहे थे ।पुरा रस्ता सुनसान था ।ऐसा लगता था की आज मुझे पकरना है काली अन्धेरे रात को।मेरी आज फिर से ठन

ग्यी थी ।मै रुक नही सकता था ।आज इस कर्कती ठंड मे भी मुझे तप्ती गर्मी का एहसास हो रहा था ।बस लछ्य एक ही था की इस काली अन्धेरी रात को पकरना है ।लेकिन वो सरक के किनारे पर जलती हुई लाईट उसे मुझ से दूर कर ने की कोसिस कर रही थी ।लेकिन आज जितना मुझे ही था ।बस मुझे उस अन्धेरे से मिल कर एक बार पूछना था की वो क्यू आती है मेरी जिंदगी मे,

उसे मुझसे इतनी मुहबब्त क्यू है और अगर वो मुझ पे मरती है तो फिर मुझसे रूठ कर चले क्यू जाती है ।क्या उसे पता नही है की मुहब्बत होती क्या है या सायद उसने कभी किसी से प्यार किया ही नही था । या फिर कही उसे ये बात बुरी तो नही लगी की मैने उसे बतया नही था ।आज मुझे उसे बताना था की मैने उसे टुट के चाहा है । मैने बिताये है अपनी जिंदगी की कुछ हसिन पल,कुछ हसीन सपने उसकी बाहो मे ।मै तो बस उस से मिलता था , जब भी वो आती थी एक सकुन सा मिलता था ,कितनी सान्ती मिलती थी उसकी बाहों मे ।बिल्कुल मै भुल जाता था ,अपने गम को अपने परेसानी को ,मुझे तो बस उसकी बाहों मे लेटना पसंद था ।वो नही जा सकती थी यू मुझे छोर के मेरा कसूर ही क्या था ,क्या किया था मैने ,।और अगर मैने कुछ किया ही था तो क्या अधिकार था उसे ऐसा कर ने का ,इत्ना तरपाने का ,।मेरे उम्मिद को तोर दिया था उसने ,मुझे नही पता था वो इतना दूर भी जा सकती है ,मै तो उसे बस अपने सपने मे चाहता था।मैने कभी उससे अपने मुहब्बत का इजहार नही किया ।डर था कही वो दूर ना हो जाए ।,

मुझे किस बात की सजा मिली थी , मै सम्झ नही पा रहा था ,मै पागल हो रहा था मुझे पाना था उसे ,मुझे अकेले मे कर नी थी दो बाते उस से ,आज मुझे इस बात का अफसोस हो रहा था ,क्यू नही की मैने उस से अपने दिल की बात,क्यू मै उस्की सहेलियो के साथ अत्खेलीया कर ता रह गया,कही चुभ तो नही गई ये बात उसे,मुझे बस मिलना था एक बार उससे लेकिंन वो तो चली गयी थी पता नही कहाँ,लेकिं मुझे आज उसे खोजना था ,। नही जी सकता था मै बिना उसके एहसास के , मुझे आदत सी हो गयी थी उसके साये मे रहने की ,मैने कभी उस से नही बोला की वो मेरे साथ रहे ,मेरे लिये तो बस उसकी सांसों की एक झोका ही काफी थी ,मेरे रोम रोम तो बस उस हवा के झोंको को एहसास कर के ही खुस हो जाती थी जो उसकी रुह को छु के आती थी , मैने तो बस उसका एहसास किया था ,क्या प्यार कर ना गलत था ,या फिर मैने उसे नही बता के गल्ती की थी ।ये तो पता नही ,लेकिन मैने उसे चाहा था दिलो जान से ।

हाँ , मै मनता हू मुझे उससे बात करनी थी मुझे उसे बताना था अपने दिल की बात, मुझे उसे बोलना था की मैं तुम से बेहद प्यार कर ता हू

लेकिन क्या सारी बाते बोल ने से ही पुरि होती है

मैने सुना था की दिल की जुवा आंख होती है

प्यार कर ने वाले अन्खो से ही पढ लेते है

तो क्या उस्ने मेरी अन्खो मे अपने लिये प्यार नही देखा था ।या फिर मेरे प्यार मे उतना समर्पण नही था ,क्या मैने उसे जी भर के नही चाहा था ,।

ना मैने उसे चाहा था ,खुद से ज्यादा ,।उसके छोटी छोटी बातों का ध्यान रखा था मैने ,। हा मैने कभी उसे बोला नही की मै तुम से प्यार कर ता हू ,।लेकिन मै उसके दिल के बहुत करीब था इतना मुझे पता था

मुझे याद है वो दिन जब जब एक दिं मै बीमार पड़ा था ,छोर दिया था जिना उसने मेरे लिये

सब कुछ छोर के बैठी थी वो मेरे सर को अपने गोद मे लेके ।,

मेरे बीमारी की दवा बन गई थी वो ,।मैने देखा था उसकी आंखो मे ,।मेरे लिये प्यार ,।

मेरे जिदगी की सबसे हसीन पल थी वो मेरे आंखो की नींद थी वो ,सब कुछ ले गई थी अपने साथ बस छोरा था उसने अपने कुछ सुनहरी यदो को

मै सोच रहा था उसके हसिन पलो को और जा रहा था भागता ।

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