9 गौरव - अध्याय 9

मुझे इस तथ्य को स्वीकारने में मुश्किल हो रही है कि हम सपना को एक बड़े व्यक्ति का सामना करने के लिए कह रहे हैं। वह बहुत छोटी है। वह मुश्किल से मेरी कमर के ऊपर पहुँचती है।

लेकिन माँ सही है कि हमें ऐसे लोगों से निपटने के लिए उसे तैयार करने की आवश्यकता है। वह पेरिस में अकेली होगी।

मैं खुद को समझाया कि उस धोंसीये ने मेरी सपना को छूने के बारे में सोचा भी तो मैं उसे नहीं छोडूंगा।

जाने कब सपना इतनी महत्वपूर्ण हो गयी और कब मैं उसका रक्षक बड़ा भाई बन गया। यह एक सुखद अहसास है। कभी-कभी वो मुझे मेरी बेटी जैसी भी लगती है।

"सपना, हमें तुमसे कुछ बात करनी है बेटा" माँ ने कहा

"क्या हुआ दीपाली मौसी?" सपना ने पूछा।

"हम जानते हैं कि तुम्हे कॉलेज में कोई परेशान कर रहा है और यही कारण है कि अब तुम कॉलेज नहीं जाना चाहती हो"

" आप कैसे जानती हैं? क्या कॉलेज प्रिंसिपल ने मेरे बारे में शिकायत की थी? मैंने कुछ नहीं किया। मैं सच कह रही हूँ। उसने ही मेरा मजाक उड़ाया और मुझे परेशान किया। मैंने तो उसे यह बताया कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए और यह गलत है लेकिन हर कोई मुझ पर ही हंसने लगा। " ये बोलते बोलते सपना की आंखे भर आई।

मुझे इतना गुस्सा आ रहा था कि अगर वह धोंसिया सामने होता तो शर्तिया मुझसे पिट जाता इस वक़्त। लेकिन मैंने खुद को संभाला क्योंकि मैं पहले से ही डरी हुई बच्ची को और डराना नहीं चाहता था।

"तुमने कुछ भी गलत नहीं किया है और किसी ने तुम्हारे बारे में कोई शिकायत नहीं की है। इसलिए चिंता मत करो और रोओ मत। हम सभी हमेशा तुम्हारे साथ हैं और हमें तुम्हारी हर बात पे यकीन है। " माँ ने प्यार से कहा।

"लेकिन हम उस धोंसीये को भी तुम्हे कॉलेज जाने से रोकने नहीं दे सकते ना। तुम्हारे लक्ष्य और प्रतिभा नहीं रुकेंगे क्योंकि एक बड़ा आदमी बडों की तरह व्यवहार करने को तैयार नहीं है। सुनो बच्चे, धोंसिये वे लोग हैं जो दूसरों को अपमानित करने में संतुष्टि प्राप्त करते हैं। वे हमेशा ऐसे इंसान को अपना लक्ष्य चुनते हैं जो शारीरिक रूप से कमजोर है। ताकि अगर लक्ष्य वापस लड़ने की कोशिश करे तो वे शारीरिक रूप से भी उसे दरा धमाका सकें। इससे उन्हें श्रेष्ठता का झूठा एहसास होता है और उनके अहम की संतुष्टि मिलती है। "

"इसलिए, हमेशा याद रखना, जो व्यक्ति दूसरों को धमकाने की कोशिश कर रहा है, वह गलत है न कि जिसे वोह धमाका रहा है। और हम ऐसे व्यक्ति को बिना सज़ा दिए जाने नहीं दे सकते। क्यूंकि उसे जाने देना उसे प्रोत्साहित करने के बराबर होगा। हमेशा याद रखें जो व्यक्ति अत्याचारी को सहन करता है वह उतना ही गलत है जितना कि अत्याचार करने वाला। अगर हम इस तरह के व्यवहार के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाते हैं तो हम इसे प्रोत्साहित कर रहे हैं और यह ग़लत है। " माँ ने समझाया

"मैं समझती हूं मौसी, लेकिन मुझे समझ ही नही आ रहा कि मैं क्या करूं" सपना ने कहा

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