3 अध्याय 3 - गौरव

कार्यालय की बैठक से बाहर आते ही गौरव का फोन आवाज़ करने लगा। वह बहुत उत्साहित महसूस कर रहा था क्योंकि उसके ड्रीम प्रोजेक्ट पर सबकी प्रतिक्रिया बहुत सकारात्मक थी। अंतिम प्रस्तुति में केवल कुछ संशोधन और थोड़े अधिक विवरण पूछे गए हैं।

जब उसने अपना फोन जांचा तो उसकी मां का संदेश आया था।

"माँ ने अपने दोस्त की बेटी की बचपन की तस्वीर क्यों भेजी है?" माँ भी बहुत ही मजाकिया है। कम से कम मेरे पास उसका नाम और उड़ान का विवरण है ये उसको हवाई अड्डे पर मिलने के लिए काफ़ी होना चाहिए। " गौरव ने सोचा।

फिर गौरव काम में व्यस्त हो गया। अगली बार जब उसने समय देखा तो शाम के 6 बज चुके थे। "मुझे हवाई अड्डे के लिए निकालना चाहिए" उसने सोचा।

शाम के 7 बज रहे थे और गौरव अपने हाथ में सपना के नाम के कागज के साथ आगमन गेट पर खड़ा था और एक महिला के इंतजार में था कि वह उसे पहचान ले और उसके पास आए।

उसने बिल्कुल उम्मीद नहीं की कि उसकी मां ने जिस बच्ची की तस्वीर भेजी थी वही बच्ची सामने से उसके तरफ आ रही थी। उसके पीछे एयरपोर्ट परिचारक उसके सामान की ट्रॉली को धक्का देके ला रहा था।

गौरव पूरी तरह से दंग था। "क्या आप गौरव चंद्र सर हैं? क्या मैं आपकी फोटो पहचान पत्र देख सकता हूं? " अटेंडेंट ने पूछा।

इसने गौरव को ताज़्जुब से बाहर निकाला और उसने जल्दी से अपना ड्राइविंग लाइसेंस सौंप दिया।

उसके ड्राइविंग लाइसेंस से संतुष्ट होने के बाद, परिचारक ने पूछा "आपने अपना वाहन कहाँ रखा है? क्या मैं आपके वाहन तक सामान ले जाऊं? "

"जी नहीं, धन्यवाद। मैं खुद ले जाऊंगा। "गौरव ने कहा और परिचारक को बख्शीश सौंप दी।

"आओ बेटा। चलो जाते रहे।" गौरव ने सपना से कहा।

"मेरा नाम सपना है और मैं बच्ची नहीं हूँ। मैं अभी 12 साल की हो गई हूं। " सपना बोली।

"ठीक है सुश्री सपना। मुझे खेद है, क्या हम अब आगे बढ़े " गौरव ने मुस्कुराते हुए कहा।

"ठीक है, पर सबसे पहले आप मां से बात करिए। वो बहुत चिंतित होंगी" सपना बोली।

"क्या तुम्हारे पास उनका नंबर है।"

" जी मेरे फोन में है।" कहते हुए सपना ने अपनी मां का नंबर मिला कर गौरव को पकड़ा दिया।

" सपना तू पहुंच गई बेटा।" उधर से आवाज़ आई।

" जी आंटी मै गौरव बात कर रहा हूं। मैंने सपना को हवाई अड्डे से ले लिया है। अब हम घर के लिए निकाल रहे हैं। आप बिल्कुल परेशान मत होइए।

" बहुत धन्यवाद बेटा"।

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