1 छुटकी तारा

                                    

 

     अरे! ये मैं कहाँ आ गई? बादलों में कैसे आ गई?  क...क्य...क्या मैं मर गई या फिर ये कोई ख़्वाब है अगर नहीं तो मैं ऐसे-कैसे नीचे आ गई? नन्हीं-नन्हीं आँखों को टिमटिमाते हुए डरी हुई छुटकी तारा ख़ुद से ही ढेर सारी सवालें पूछे जा रही थी क्योंकि उसके आस-पास और कोई नहीं था। बादलों की गोद में बैठी छुटकी तारा अभी ये सोच ही रही थी कि सहसा वह चौंक पड़ी।

     उसे ऐसा लगा जैसे उसके कानों में कोई फुसफुसा रहा है जब वह पीछे मुड़कर देखी तो पीछे कोई नहीं था उसने सब तरफ देखा लेकिन उसे कोई नहीं दिखा। वह अपने छोटे कदमों से टुनमून-टुनमून कभी इधर तो कभी उधर भागे जा रही थी कि उसे फिर से वे शब्द सुनाई दिये-

 

     छुटकी! तू है सबसे प्यारी.....

 

छुटकी- लेकिन तुम हो कौन?

 

     मैं वो हूँ

     जो सबको लिखता हूँ

     और तुझे बड़ी गौर से पढ़ता हूँ

     विश्व रचईया हूँ मैं

     मेरे लिए आकांक्षा से ज्यादा

     आवश्यकता की महत्ता है

     लेकिन, तेरी आकांक्षा का पलड़ा हर बार

     आवश्यकता से अधिक झुका हुआ पाया

     जा! आज तेरी ज़मीं पर जाने की आकांक्षा पूरी होगी

     जाने से पहले कुछ पल बादल में ठहर जा

     बादलों से तू गरजना और बरसना सीख जा

     तारा से आरा बन जा, प्यारी से न्यारी बन जा

     और हवा से बातें करते हुए मैदान में उतर जा

     एक सवाल है, जो मैं तुझसे पूछना चाहता हूँ

     हालांकि! जवाब मैं जानता हूँ

     फिर भी, तुझसे सुनना चाहता हूँ

     एक बार नीचे जो जाओगी

     तो ऊपर नहीं आ पाओगी

     क्या तुम, फिर भी जाना चाहोगी?

 

छुटकी तारा ने मुस्कुरा कर जवाब दिया और क्या खूब जवाब दिया-

 

     हाँ! मैं जाऊँगी और जरूर जाऊंगी

     जिनपर भी गिरूंगी

     बहुतों को मार गिराऊंगी

     जहाँ भी गिरूंगी

     अपनी छाप छोड़ जाऊंगी

     जानती हूँ; लौटकर वापस

     फिर ना आ पाऊंगी

     फिर भी, मैं जाऊँगी और जरूर जाऊंगी।

 

 

     जैसे- 'कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है' वैसे ही कभी-कभी ऊंचे मुक़ाम को हासिल करने के लिए अपना मकान तक छोड़ना पड़ता है।

     मेरी ये कहानी देश के उन वीर जवानों,  अंतर्राष्ट्रीय गुप्तचरों और हुए हर एक शहीदों के नाम है, उनके लिए है, उन्हीं को समर्पित है क्योंकि उन्होंने ख़ुद को वतन पर कुरबां किया।

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